Monday, 30 December 2013

मुक़द्दर मेरा

जाने कब नींद से जागेगा  मुक़द्दर मेरा ।
और ये कितना रुलाएगा  मुक़द्दर मेरा ॥

रोज़ की रोज़ चलाता है नयी राहों पर ।
कौन से मोड़ पे ठहरेगा मुक़द्दर मेरा ॥

मेरे हाथों की लकीरों से हुआ है ग़ायब ।
लौट के क्या कभी आयेगा मुक़द्दर मेरा ॥

मैं थका हूँ बना के रोज़ नयी तदबीरें ।
कैसे अब देखिये संवरेगा मुक़द्दर मेरा ॥

मैं भी उम्मीद किये बैठा हूँ अब उस दिन जब ।
वक़्त के साज़ पे नाचेगा मुक़द्दर मेरा ॥

हाल-बेहाल हुआ ठोकरें खा-खा कर के ।
अब कहाँ जाके ये पटकेगा मुक़द्दर मेरा ॥

आज फिर से किये लेता हूँ  यक़ीं मैं उसका ।
'सैनी' कहता है कि बदलेगा मुक़द्दर मेरा ॥

डा० सुरेन्द्र सैनी  


   

Friday, 27 December 2013

लब -ओ-रुख़सार की बातें

क़लम लिखता नहीं मेरा लब -ओ-रुख़सार  की बातें ।
निकलती हैं फ़क़त इससे  ख़ुलूस -ओ-प्यार की बातें ॥

अगर मैं प्यार करता हूँ तो बस मैं प्यार करता हूँ ।
नहीं मैं प्यार में करता हूँ कारोबार की बातें ॥

मेरा तो काम दुन्या भर के लोगों को जगाना है ।
बक़ाया काम है सरकार का सरकार की बातें ॥

गगन के चाँद को देखूँ या फिर मैं आपको देखूँ ।
उधर हलकान करती हैं दिल -ए -बीमार की बातें ॥

ज़ियादा तूल मत देना लगाना अक़्ल अपनी भी ।
बड़ी ही चटपटी होती हैं ये अख़बार की बातें ॥

लगाऊँ क्या भला अंदाज़ मैं तेरी मुहब्बत का ।
हमेशा ही रही मुझसे तेरी तक़रार की बातें ॥

मुहब्बत के समुंदर में लगा बैठे सभी डुबकी ।
सुना कर आज जब 'सैनी'गया दिलदार की बातें ॥

डा० सुरेन्द्र सैनी  

Wednesday, 25 December 2013

नए साल में दुआ

सबके चेहरों पे नूर ठहरा हो ।
और रानाईयों का पहरा हो ॥

डूब कर आप जिसमें रह जाएँ ।
प्यार हर दिल में इतना गहरा हो ॥

ताब जिसकी हो चाँद के जैसी ।
सबकी क़िस्मत में एसी ज़हरा हो ॥

पूरी धरती गुलों से महकी हो ।
दूर तक भी न कोई सहरा हो ॥

मुस्कुराहट गुलाब जैसी हो ।
एसा पुरनूर सबका  चेहरा हो ॥

मुल्क में हर तरफ़ तरक्की हो ।
वक़्त कल का बड़ा सुनहरा हो ॥

है नए साल में  दुआ 'सैनी '।
अँधा ,गूँगा न कोई बहरा हो ॥

ज़हरा -------ख़ूबसूरत  औरत


डा० सुरेन्द्र सैनी  

Tuesday, 24 December 2013

बताओ कौन अच्छा है

अगर सब ही बुरे हैं तो बताओ कौन अच्छा है । 
उसी को ताज पहनाओ बताओ कौन अच्छा है ॥  

शराफ़त के मुखौटे सब के चेहरों पर लगे लेकिन । 
दिलों में  झाँक कर देखो बताओ कौन अच्छा है ॥  

दिखा कर ख़ाब झूठे कुसियों पर लोग जा  बैठे । 
ख़ुदा के वास्ते हमको बताओ कौन अच्छा है ॥  

चलन उनका भी देखा है चलन देखा तुम्हारा भी । 
तजरबा  हो गया अब तो बताओ कौन अच्छा है ॥  

निशाने पर हमेशा दूसरों की आँख रखते हैं । 
उन्ही की आँख से पूछो बताओ कौन अच्छा है ॥  

बुराई और अच्छाई हैं दोनों ही निहाँ उसमें । 
बुरा भी वो भला भी वो बताओ कौन अच्छा है ॥  

सियासत में  हमारे बीच से ही लोग जाते हैं ।   
अगर 'सैनी' खड़े हैं दो बताओ कौन अच्छा है ॥  

डा० सुरेन्द्र सैनी  
   

ख़तरे जैसी बात न कर

ख़तरे जैसी बात न कर ।
डरने जैसी बात न कर ॥

दिल से करदे आज अता ।
धोखे  जैसी बात न कर ॥

आलिम-फ़ाज़िल लोग सभी ।
ठगने जैसी बात न कर ॥

है ग़म का माहौल यहाँ ।
हँसने जैसी बात न कर ॥

ख़तरे में है आज अवाम ।
बँटने जैसी बात न कर ॥

छोटी सी बातों में कभी ।
मिटने जैसी बात न कर ॥

नाज़ुक दिल है मेरा बहुत ।
नख़रे जैसी बात न कर ॥

सबसे ऊंचा तेरा ज़मीर ।
बिकने जैसी बात न कर ॥

'सैनी' के घर में तू कभी ।
परदे जैसी बात न कर ॥

डा० सुरेन्द्र सैनी  

उजालों में

इन गुज़श्ता तमाम सालों में । 
अक्स तेरा रहा ख़यालों में ॥ 

नाम उसका निकल गया मुँह से । 
और मैं  घिर गया सवालों में ॥ 

आजकल हैं वो किस बलंदी पर । 
रोज़ ही छप रहा रिसालों में ॥ 

तीरगी में तो साफ़ सुथरा था । 
दाग़ लगवा लिए उजालों में । 

जब से देखा तुम्हे हुआ शामिल । 
नाम मेरा भी इश्क़ वालों में ॥ 

मैं दिखाता  हूँ प्यार के रस्ते । 
मुझको रक्खो न बंद तालों में ॥ 

आज 'सैनी' से पूछना जा कर । 
किसके वो खो गया ख्यालों में ॥ 

डा० सुरेन्द्र सैनी  

Thursday, 12 December 2013

प्यार सीधा खुदा से आता है

प्यार जो उम्र भर निभाता है । 
प्यार में इंक़िलाब लाता है ॥ 

प्यार बिकता नहीं दुकानों पर । 
प्यार सीधा खुदा से आता है ॥ 

प्यार को खेल जो समझते हैं । 
प्यार उनको नहीं सुहाता है ॥ 

जिसके जज़्बात ही न हों दिल में । 
प्यार फ़र्ज़ी वही दिखाता है ॥ 

उससे उम्मीद प्यार की कैसी । 
प्यार में असलियत छुपाता है ॥ 

प्यार में जो फ़िरेब करता है । 
प्यार से वो फ़िरेब खाता है ॥ 

जीतना जानता नहीं 'सैनी '। 
प्यार में रोज़ हार जाता है ॥ 

डा० सुरेन्द्र सैनी  

Wednesday, 11 December 2013

नामवर आशिक़

किसी ने प्यार से महका गुलाब भेजा है ।
बड़े ख़ुलूस से ख़त का जवाब भेजा है ॥

कहीं पे उनको गिरानी है आज तो बिजली ।
फ़लक से चाँद ने उनको शबाब भेजा है ॥

सुना है क़र्ज़ वो रखते नहीं किसी का भी ।
मेरी वफाओं का सारा हिसाब भेजा है ॥

लिखूं मैं कुछ तो सिफ़ारिश किताब पे उनकी ।
तभी तो एक क़लम -मय -किताब भेजा है ॥

हया के पीछे छुपा रक्खी शोखियाँ सारी ।
ख़ुदा ने ख़ास ये देकर हिजाब भेजा है ॥

कहा है रोज़ ही मुझसे मिला करेंगे वो ।
दिखा के मुझको नया आज ख़ाब भेजा है ॥

जला न दे कहीं ये धूप गोरे गालों को ।
हवा ने साये की ख़ातिर सहाब भेजा है ॥

बना हूँ मैं तो आज एक नामवर आशिक़ ।
ये दोस्तों ने मुझे अब ख़िताब भेजा है ॥

बड़े ग़ज़ब का मुक़द्दर दिया इलाही ने ।
बना के 'सैनी' को ख़ाना -ख़राब भेजा है ॥

डा० सुरेन्द्र सैनी   

Sunday, 8 December 2013

रंगीन कर

बेसबब मत सोच को ग़मगीन कर ।
हौसलों से रास्तें रंगीन कर ॥

जो विरासत में उजाले मिल गए ।
चूम ले उनको न यूँ  तौहीन कर ॥

पेट अपने हक़ से मेरा भर रहा ।
क्या करूंगा दूसरों से छीन कर ॥

मिट न जाए क़ौम का नाम-ओ-निशाँ ।
ज़ुल्म तू ऐसा नहीं संगीन कर ॥

एब फैले हैं जहाँ में दूर तक ।
आँख को अपनी ज़रा दुरबीन कर॥

प्यार का है ज़ायका मीठा बड़ा ।
मत जफ़ाओं से इसे नमकीन कर ॥

इश्क़ तू  फ़रमा चुका 'सैनी ' बहुत ।
बंदगी का ख़ुद को अब शौकीन कर ॥

डा० सुरेन्द्र सैनी

 

Thursday, 5 December 2013

कोई किसान लिक्खेगा

 हुस्न होकर जवान लिक्खेगा ।
 इश्क़ की दास्तान  लिक्खेगा ॥

आज आशिक़ सनम को मेहर में ।
सातवा आसमान लिक्खेगा ॥

अब्र भी बर्क़ को हिदायत में ।
एक मेरा मकान लिक्खेगा ॥

कुछ न होगा तेरी सदाक़त का ।
जब वो झूठा बयान लिक्खेगा ॥

बोलिये आप जो भी बोलेंगे ।
वो ही ये बेज़ुबान लक्खेगा ॥

किसकी क़िस्मत में कितने दाने हैं ।
ये तो कोई किसान लिक्खेगा ॥

'सैनी' अपने क़लम से दुन्या में ।
मुल्क की आन-बान लिक्खेगा ॥

डा० सुरेन्द्र सैनी  

Tuesday, 3 December 2013

दिल में बसे हुए हैं

हमारे दिल में बसे  हुए हैं ।
तभी तो अब तक बचे हुए हैं ॥

जहां का खाया नमक हमेशा ।
वहीं पे फ़ितने किए हुए हैं ॥

बताना होश आने पे तबीयत ।
अभी तो दारू पिए हुए हैं ॥

यहाँ हैं लाशें दबी किसी की  ।
जहाँ अकड़ कर खड़े हुए हैं ॥

दुआओ में तुमको याद रक्खा ।
ख्यालों में क्यूँ बुरे हुए हैं ॥

जहाँ पे गंदी हुई सियासत ।
वहाँ पे झगडे बड़े हुए हैं ॥

कभी जो तुमने दिए जफ़ा के ।
दिलों पे नश्तर गुदे हुए हैं ॥

किसी के धंदे किसी के फ़ंदे ।
गले में अपने पड़े हुए हैं ॥

अदा पे जिसकी मिटा है 'सैनी'।
उसी के आंसू दिए हुए हैं ॥  

डा०सुरेन्द्र सैनी  

Monday, 2 December 2013

जब-जब बेबस होता हूँ

मैं अपनी क़िस्मत के आगे जब-जब बेबस होता हूँ ।
तुम क्या जानो तन्हाई में कितने आँसू रोता हूँ ॥

जिन नग़मों पे सुनने वाले अक्सर झूमा करते हैं ।
मैं रातों में उनके ही ताने-बाने में सोता हूँ ॥

जाने क्यूँ उगते हैं कांटे मेरे नन्हें पौधों पर ।
फूलों के बीजों को मैं इतनी शिद्दत से बोता हूँ ॥

घाइल हो जाता है सीना अपनों की बाते सुनकर ।
ख़ूँ आलूदा ज़ख्म-ए -दिल को अश्क-ए -ग़म से धोता हूँ ॥

सच्चाई से जो मिलता है बच्चों को नाकाफ़ी है ।
काम आयेगी कब ख़ुद्दारी रोज़ाना जो धोता हों ॥

अपनी नाकामी पर जब भी बढ़ जाती है बेचैनी ।
खिसियाहट में पागल होकर अपना आपा खोता हूँ ॥

'सैनी' किससे कब रूठा हूँ  कोई तो ये बतलाये ।
सबको अपना-अपना बोलूं चाबी वाला तोता हूँ ॥

डा० सुरेन्द्र सैनी    

Wednesday, 27 November 2013

उकता गए हैं वो

अब हर घड़ी के प्यार से उकता गए हैं वो ।
तक़रार थोड़ी कीजिये पास आ गए हैं वो ॥

दिन भर की दौड़- धूप  से चेहरे पे है थकान ।
आराम करने दो   उन्हें कुम्हला गए हैं वो ॥

ये यकबयक क्यूँ आ गयी तुर्शी मिज़ाज में ।
मेरी ज़रा सी बात पर बौरा  गए हैं वो ॥

रख कर निक़ाब ताक़ पर महफ़िल में हुस्न की ।
परचम ग़ुरूर-ए -हुस्न का लहरा गए हैं वो ॥

अब प्यास बढ़ती जाए है उम्र-ए -रवाँ  के साथ ।
पैमाने में बची थी जो छलका गए हैं वो ॥

कब क्या हुआ कैसे हुआ ये मुझसे पूछिए ।
इक दर्द रोम-रोम में सरका गए हैं वो ॥

आँखों से उनकी पी चुका 'सैनी' बहुत शराब।
अब बस भी यार कीजिये घबरा गए हैं वो ॥

डा०सुरेन्द्र सैनी  

Monday, 25 November 2013

कैसा प्यार करते हैं

वो हमें कैसा प्यार करते हैं ।
पीठ पीछे से वार करते हैं ॥

आ गया जो ज़बान पर जुमला ।
पेश उसे बार-बार करते हैं ॥

लोग ज़िल्लत के कारनामों से ।
क़ौम को शर्मसार करते हैं ॥

साफ़ हमसे वो झूठ कहते हैं ।
और हम  एतबार करते हैं ॥

पास उनको ज़रा नहीं इसका ।
जिनपे हम जाँ निसार करते हैं ॥

उनकी तारीफ़  क्या ज़रा सी की ।
अब वो नख़रे हज़ार करते हैं ॥

दिलबरों से तू मत उलझ 'सैनी'।
ये बहुत बेक़रार  करते हैं ॥

डा०सुरेन्द्र सैनी  

Sunday, 24 November 2013

हवाओं का रुख़

रुख़ हवाओं का मोड़ा गया । 
दिल घटाओं का तोड़ा गया ॥ 

इश्क़ में अब तो हर फैसला । 
बस रक़ीबों पे छोड़ा गया ॥ 

एक नासूर बन जाएगा । 
आबला गर न फोड़ा गया ॥ 

बावफ़ाओं की लम्बी क़ितार । 
मुझको उसमें न जोड़ा गया ॥ 

मुझको बिन जुर्म देकर सज़ा । 
ज़र्फ़ उसका भी थोड़ा गया ॥

रहमतें की ख़ुदा ने अता । 
हाथ नाहक़ सिकोड़ा गया ॥

लाश 'सैनी बना फिर रहा । 
ख़ून इतना निचोड़ा गया ॥   

डा० सुरेन्द्र सैनी  

Thursday, 21 November 2013

एहसास

एहसास ज़िंदगी में जो छू कर गुज़र गया ।
मेरे लिए बहुत बड़ा वो काम कर गया ॥

तेरे बग़ैर जी सकूँ कोशिश में हूँ ज़रूर ।
वर्ना वुजूद तो मेरे भीतर का मर गया ॥

हम सूफ़ियाना दिल लिए बचते रहे मगर ।
उनकी नज़र का तीर था दिल में उतर गया ॥

साये के पीछे भाग कर मुझको न कुछ मिला ।
ओझल निगाह से हुआ जाने किधर गया ॥

फ़रमाइशों पे आज फिर बच्चों को डाँट दी ।
जब ले के खाली जेब मैं दफ़्तर से घर गया ॥

शर्म-ओ-हया तो ताक़ पे रख दी है उसने आज ।
लगता है उसकी आँख का पानी उतर गया ॥

कोई नहीं है आर्ज़ू कोई न जुस्तजू ।
'सैनी'किसी के प्यार में हद से बिखर गया ॥

डा०सुरेन्द्र सैनी   

Sunday, 17 November 2013

तमन्नाओं की मंज़िल

किसी की आह सुनकर जिसकी बेचैनी बढ़ी होगी । 
वो सीरत भी भली होगी वो सूरत भी भली होगी ॥ 

इनायत से भरी नज़रें हैं उसकी अब मेरी जानिब । 
सदाक़त प्यार की उसने भी मेरे मान ली होगी ॥ 

चुरा कर ले गया दौलत जो मेरे चैन की कोई । 
नहीं थी काम की मेरे वो उसके काम की होगी ॥ 

तेरी चाहत के सदक़े आज मैं सब कुछ लुटा बैठा । 
जो तू देकर गया आँखों में अब तो वो नमी होगी ॥ 

हसद में बौखलाहट बढ़ गई है आज लोगों की । 
किसी का कुछ सँवरने पर किसी को क्या ख़ुशी होगी ॥ 

मुसलसल ग़म दिए हैं ज़िंदगी ने अब तलक मुझको । 
भला मुझसे बुरी अब क्या किसी की ज़िंदगी होगी ॥ 

तमन्नाएं मचलती  हैं बहुत सी ज़िहन में 'सैनी' । 
ख़बर क्या थी तमन्नाओं की मंज़िल मैकशी होगी ॥ 

डा० सुरेन्द्र सैनी  

हाथ में जब से थामा क़लम

हाथ में जब से थामा क़लम । 
सच को सच ही लिखा है सनम ॥ 

आज होकर मुक़ाबिल मेरे । 
प्यार के तोड़े उसने भरम । 

और कब तक सहूँ मैं बता । 
रोज़ दर पेश है इक सितम ॥ 

उसकी नस-नस में बारूद है । 
भूल बैठा वो दैर -ओ-हरम ॥ 

कैसी ग़फ़लत में है नाख़ुदा । 
दुश्मनो के न दिखते क़दम ॥ 

आज ख़ुश -फ़हम है ये अवाम । 
गो कि  कर दे कोई सर क़लम ॥ 

सर ये 'सैनी' का कट जाए भी । 
लेगा सच के लिए ही जनम ॥ 

डा० सुरेन्द्र सैनी  

Sunday, 10 November 2013

रास्ता नहीं मिलता

ख़ौफ़ से ख़ारिजा नहीं मिलता ।
एक भी रास्ता  नहीं मिलता ॥

सब के सब हैं  हमाम में नंगे ।
शर्म से कुछ ढका  नहीं मिलता ॥

हाथ मिलते हैं और चलते हैं ।
कोई बाक़ायदा  नहीं मिलता ॥

लोग करते हैं जो ज़िना -बिल-जब्र ।
क्या उन्हें मशविरा नहीं मिलता ॥

कश्तियाँ ले चले जो तूफाँ में ।
मातबर नाख़ुदा  नहीं मिलता ॥

आपको छोड़ कर कहाँ जाऊँ ।
आपसा रहनुमा  नहीं मिलता ॥

ख़ुदकशी क्या करेगा अब 'सैनी' ।
ज़ह्र भी काम का  नहीं मिलता ॥

डा० सुरेन्द्र सैनी

मौसम-ए -गुल

मौसम-ए -गुल ख़िज़ाँ से निकलेगा । 
रास्ता गुलसिताँ से निकलेगा ॥ 

जब भी टूटेंगी हद ज़हादत की । 
जाने क्या-क्या ज़बाँ से निकलेगा ॥ 

चोट देगा कहीं  किसी दिल पर । 
तीर जब -जब कमाँ से निकलेगा ॥ 

सिर्फ़ लफ़्ज़ों की हेरा-फेरी है । 
ये ही मतलब बयाँ से निकलेगा ॥ 

कर परिंदों को भी आता वर्ना । 
इनका दाना कहाँ से निकलेगा ॥ 

तेरी चाहत जो ले के निकला है । 
कौन उस कारवॉं से निकलेगा ॥ 

इस बयाबान में फ़ँसा 'सैनी' । 
किस तरह अब यहाँ से निकलेगा ॥ 

डा० सुरेन्द्र सैनी

Mausam-e-gul

Mausam-e-gul khizaaN se niklegaa.
Raastaa gulsitaaN se niklegaa.

Jab bhee tootengee had zahaadat kee.
Jaane kyaa-kyaa zabaaN se niklegaa.

Chot degaa kaheeN kisee dil par.
Teer jab-jab kamaaN se niklegaa.

Sirf lafzoN kee heraa-pheree hai.
Ye hee matlab bayaaN se niklegaa.

Kar parindoN ko bhee ataa varnaa.
Inkaa daanaa kahaaN se niklegaa.

Teree chaahat jo leke niklaa hai.
Kaun us kaarwaaN se niklegaa.

Is bayaabaan meN fansaa ‘saini’.
Kis tarah ab yahaaN se niklegaa.

Dr.Surendra Saini

Tuesday, 5 November 2013

दीवानापन

ले डूबा दीवानापन ।
ये कैसा दीवानापन ॥

सब पर भारी पड़ता है ।
ये मेरा दीवानापन ॥

तेरे अंदर भी तो है ।
थोड़ा सा दीवानापन ॥

चाहत में जो लुट बैठा ।
है उसका दीवानापन ॥

तुम कहते हो पर मैंने ।
कब छोड़ा दीवानापन ॥

जाने क्या -क्या करवादे ।
लोगों का दीवानापन ॥

'सैनी' खाते में लिक्खे ।
किस -किस का दीवानापन ॥

डा० सुरेन्द्र सैनी  

Thursday, 31 October 2013

बात कर

छोड़ दे मन की उदासी मुस्कुरा कर बात कर ।
तू चमन की हर कली सा खिलखिला कर बात कर ॥

ज़ुर्म हो जाएगा साबित गर नज़र नीची रही ।
ज़ुर्म जब तेरा नहीं तो सर उठा कर बात कर ॥

बात कर एसी समझ में हर किसी के आ सके ।
गोल चक्कर की तरह तू मत घुमा कर बात कर ॥

अब तलक खाता रहा तू जो दिया माँ -बाप ने ।
अब तो कुछ थोड़ा बहुत तू भी कमा कर बात कर ॥

कर नहीं सकता किसी की चार पैसे से मदद ।
तू मगर उससे ज़रा सा दिल मिला कर बात कर ॥

हक़ हमेशा मांग हक़ से है ये नाजायज़ कहाँ ।
है नहीं अच्छा तू सब से गिड़गिड़ा कर बात कर ॥

ग़लतियाँ होती रहेंगी रोज़ का दस्तूर है ।
तू मगर 'सैनी' यूँ मत तिलमिला कर बात कर ॥

डा० सुरेन्द्र सैनी  

Tuesday, 29 October 2013

गोल कर जाए

सैंकड़ो बात बोल कर जाए ।
प्यार की बात गोल कर जाए ॥

रोज़ की राज़ ख़ाब में आकर ।
मुझसे आकर मखौल कर जाए ॥

उसको पहचानना बड़ा मुश्किल ।
क्या ग़ज़ब का वो रोल कर जाए ॥

जब भी आये हवा-हवाई वो ।
मुझको सारा टटोल कर जाए ॥

मेरे चेहरे को पैनी नज़रों से ।
इक हसीं नाप-तौल कर जाए ॥

मेरे मन की तमाम गांठों को ।
कोई तो आज खोल कर जाए ॥

जो भी इतिहास लिख रहा 'सैनी'.
वो उसे ही भूगोल कर जाए ॥

डा० सुरेन्द्र सैनी  

Monday, 28 October 2013

न जाने क्यूँ अब

कोडियों में बिके हैं लोग न जाने क्यूँ  अब ।
अपने क़द से गिरे हैं लोग न जाने क्यूँ  अब ॥

सब ही चेहरों पे मुखौटे लगा के फिरते हैं ।
यूँ समझ से परे हैं लोग न जाने क्यूँ  अब ॥

देख कर मेरी निज़ामत का असर महफ़िल में ।
मुझसे जलने लगे हैं लोग न जाने क्यूँ  अब ॥

इक ज़माना था सभी का था मुनव्वर चेहरा ।
सब ही दाग़ी बने हैं लोग न जाने क्यूँ  अब ॥

सीधी सी बात नहीं दिल में उतर पाती है ।
अपनी ज़िद पे अड़े हैं लोग न जाने क्यूँ  अब ॥

कौन आया है पडौसी को न कोई मतलब ।
यार इतने बुरे हैं लोग न जाने क्यूँ  अब ॥

आज 'सैनी'को नज़र आ रहा ख़तरा उनसे ।
जो हसद से भरे हैं लोग न जाने क्यूँ  अब ॥

डा० सुरेन्द्र सैनी   

Wednesday, 23 October 2013

अगर ग़ज़लें नहीं कहता

क़ज़ा से डर गया होता अगर ग़ज़लें नहीं कहता । 
कभी का मर गया होता अगर ग़ज़लें नहीं कहता ॥ 

हज़ारों रास्ते थे सामने जब ज़र कमाने के । 
कमाई कर गया होता अगर ग़ज़लें नहीं कहता ॥ 

ज़माने के फ़रेब -ओ-मक्र पर जब ग़ौर करता हूँ । 
ज़माने पर गया होता अगर ग़ज़लें नहीं कहता ॥ 

असर जब हुस्न की रानाइयाँ दिल पर लगी करने । 
मेरा जी भर गया होता अगर ग़ज़लें नहीं कहता ॥ 

मुहब्बत करने वाले मुझको दुन्या में अब इतने हैं । 
न यूँ ऊपर गया होता अगर ग़ज़लें नहीं कहता ॥ 

जहालत को ज़हादत पर नहीं होने दिया क़ाबिज़ । 
मैं बन क़ाफ़र गया होता अगर ग़ज़लें नहीं कहता ॥ 

सुखन में बात आपस की हमेशा कह गया 'सैनी '। 
तो क्या कह कर गया होता अगर ग़ज़लें नहीं कहता ॥ 

डा०सुरेन्द्र सैनी  
 

Friday, 18 October 2013

बाज़ी मार जाता हूँ

अगरचे आम लोगों से तो बाज़ी मार जाता  हूँ ।
मगर मैं अपने प्यारों से हमेशा हार  जाता  हूँ ॥

करूँ मैं दूसरों को हर्ट ये मक़्सिद नहीं मेरा ।
नहीं शर्म-ओ -हया के दायरे के पार जाता  हूँ ॥

मुझे मालूम है इन्कार ही मुझको करेगा वो ।
मैं ठहरा बावला उस दर पे बारम्बार  जाता  हूँ ॥

ज़रा सी बात को लेकर मुझे अपनों ने ठुकराया ।
तभी तो ढूँढने ग़ैरों में अक्सर प्यार  जाता  हूँ ॥

नशा तारी है मुझ पर इस तरह कुछ इश्क़  का तेरे ।
तेरी ख़ुशबू के पीछे छोड़ कर घर -बार  जाता  हूँ ॥

किसी सहरा में मैं प्यासे हिरन सा ढूँढने पानी ।
कभी इस पार आता हूँ कभी उस पार  जाता  हूँ ॥

अगरचे रोज़ 'सैनी' मुझको समझाता बहुत दिल से ।
सराबों में मगर फिर भी मैं पड के  हार  जाता  हूँ ॥

डा० सुरेन्द्र सैनी  

Thursday, 17 October 2013

कंगन

किसको इलज़ाम दूँ मैं ख़ुद की तबाही के लिए ।
सब के आये हैं पयाम अपनी सफ़ाई के लिए ॥

मुझको फ़रमान सुनाया है इबादत न करो ।
मैंने माँगी जो दुआ सबकी भलाई के लिए ॥

आज भी मुझको चिढायें वो गुलाबी कंगन ।
जो ख़रीदे थे कभी उसकी कलाई के लिए ॥

जान देता है हमेशा ही वो राजा के लिए ।
कोई राजा न सुना मरता सिपाही के लिए ॥

दो घड़ी बैठ तू भी नाम खुदा का लेले ।
ज़िंदगी सारी पडी ख़ूब  कमाई के लिए ॥

आज भाई ही बना जान का दुश्मन कैसा ।
जान देता था जो भाई कभी भाई के लिए ॥

जुर्म करके भी वो इनआम  के हक़दार बने ।
और अच्छाई बची मेरी बुराई के लिए ॥

मैं कलम ख़ून -ए -जिगर में ही डुबाकर अक्सर ।
रोज़ लिखता रहा हूँ उनको सियाही के लिए ॥

कौन से बिल में छुपे जाके बताओ 'सैनी' ।
रोज़ आता है महाजन जो उगाही के लिए ॥

डा० सुरेन्द्र सैनी  

Tuesday, 15 October 2013

दी शरर को अचानक हवा

दी शरर को अचानक हवा ।
और ख़ुद हो गया लापता ॥

कौन सा एसा रस्ता बचा ।
जिस पे घर एक भी न जला ॥

एहमियत वो समझते नहीं ।
कैसा रिश्ता है कैसी वफ़ा ॥

ख़ौफ़ ही ख़ौफ़ हर सिम्त है ।
काश हो कोई मुश्किल कुशा ॥

ओढ़ कर सब लिबास-ए -धरम ।
बांटने चल पड़े हैं ख़ुदा ॥

लौट कर आयेगा फिर यहीं ।
आप चुन लें कोई रास्ता ॥

अम्न की बात 'सैनी' करे ।
कब शुरू हो मगर सिलसिला ॥

डा० सुरेन्द्र सैनी            

Sunday, 13 October 2013

लाइबा हो तुम

उर्वशी हो या मेनका हो तुम ।
लोग कहते हैं लाइबा हो तुम ॥

आरज़ूओँ का मरहला हो तुम ।
जिंदगानी का फ़ल्सफ़ा हो तुम ॥

मैं तो प्यासा जनम-जनम का हूँ ।
साक़ी हो तुम कि मैकदा हो तुम ॥

सोचता हूँ जिसे तसव्वुर में ।
मेरे ख़ाबों की दिलरुबा हो तुम ॥

मंज़िलों का मक़ाम है तुम तक ।
मंज़िल -ए -इश्क़ बाख़ुदा हो तुम ॥

है तुम्हारा ही अक्स तो सब में ।
हुस्न का एक क़ायदा हो तुम ॥

अब भी उसका वुजूद क़ाइम है ।
आज 'सैनी' का हौसला हो तुम ॥


 लाइबा ---------जन्नत की हूर

डा० सुरेन्द्र सैनी

Thursday, 10 October 2013

प्यार से सस्ता क्या है


सोचता हूँ जहाँ में प्यार से सस्ता क्या है ।
प्यार के बिन किसी के पास में बचता क्या है ॥

बेतकल्लुफ़ जो हो के नाम तेरा ले बैठा ।
सबने पूछा कि  मेरा तुझसे ये रिश्ता क्या है ॥

तेरी मर्ज़ी पे मेरे प्यार की क़िस्मत ठहरी ।
अब भला और मेरे पास में रस्ता क्या है ॥

दिल लिया आपने और आँसू गए फ़ुर्क़त में ।
एक आशिक़ के भला साथ में रहता क्या है ॥

लूट कर ले चलो दुन्या से दिलों की दौलत ।
एसे ज़र के सिवा बस साथ में चलता क्या है ॥

देख के भोली सी सूरत पे न हारो सब कुछ ।
ज़िह्न में कब किसी के क्या पता पलता क्या है ॥

चोट खाए हुए शायर के क़लम से पूछो ।
डूब के लफ़्ज़ों के दरिया में वो लिखता क्या है ॥

इश्क़ में ख़ैर मनाओ मियाँ अपनी जाँ की ।
हुस्न की आग के आगे भला टिकता क्या है ॥

आप मसरूफ़ हैं दुन्या जहाँ की बातों में ।
ग़ौर से सुनियेगा 'सैनी'को ये कहता क्या है ॥

डा० सुरेन्द्र सैनी

Monday, 7 October 2013

समझता नहीं

वो इशारा समझता नहीं ।
प्यार दिल का समझता नहीं ॥

कब से प्यासा हूँ दीदार का ।
दर्द मेरा समझता नहीं ॥

उसको कैसे दिलाऊँ  यक़ीन ।
मुझको अपना समझता नहीं ॥

सब ही कहते हैं उसको बुरा ।
मैं तो एसा समझता नहीं ॥

लालची हो गया है बशर ।
हक़ किसी का समझता नहीं ॥

ताल देता है सुन कर वो बात ।
वज़्न उसका समझता नहीं ॥

बेसुरा राग 'सैनी' का है ।
पर बेचारा समझता नहीं ॥

डा० सुरेन्द्र सैनी  

Wednesday, 2 October 2013

माँ की नज़्र

अपने हिस्से की भी माँ मुझको खिला देती थी ।
ख़ुद ने खाली है वो वालिद को बता  देती थी ॥

मैं भटकने लगा जब-जब भी कभी रस्ते से ।
खींच कर मुझको माँ रस्ते पे लगा  देती थी ॥

मेरी शैतानियों से होक ख़फ़ा माँ अक्सर ।
पीट कर मेरा बुरा हाल बना  देती थी ॥

ख़्वाहिशें  मैंने अगर सामने माँ के रख दी ।
सबको मंजूर वो वालिद से करा  देती थी ॥

मुझको जब-जब किसी ने टेढ़ी नज़र से देखा ।
उसकी पल भर  में वो औक़ात दिखा  देती थी ॥

मैं परेशानियों में जब भी घिरा होता था ।
माँ  मुझे थपकियाँ देकर के सुला  देती थी ॥

आज भी याद है 'सैनी' को वो सारी बातें ।
माँ मुझे भाइयों बहनों से सवा  देती थी ॥

डा० सुरेन्द्र सैनी  

Tuesday, 1 October 2013

प्यार देता हूँ

प्यार देता हूँ प्यार लेता हूँ ।
मैं नहीं कुछ उधार लेता हूँ ॥

ग़लतियाँ रोज़ गरचे होती हैं ।
फिर भी उनको सुधार लेता हूँ ॥

कुछ भी हासिल नहीं मगर फिर भी ।
ज़िंदगी मैं गुज़ार लेता हूँ ॥

बिखरे टुकड़े समेट कर अपने ।
पैरहन को सँवार लेता हूँ ॥

वार मेरी अना पे कर दे जो ।
उसकी गर्दन उतार लेता हूँ ॥

ज़ात भँवरे की है नहीं फिर भी ।
प्रेम रस की फुहार लेता हूँ ॥

रंज-ओ-ग़म जब कभी सताते हैं ।
'सैनी'को बस पुकार लेता हूँ ॥

डा० सुरेन्द्र सैनी  

Thursday, 26 September 2013

ख़ाबों का सिलसिला

पास आते ही तुम्हारे हो गया इक हादिसा ।
हम ठगे से रह गए जब दिल हुआ ये आपका ॥

दो घड़ी बैठूं मैं तेरे गेसुओं की छावँ में ।
आरज़ू कब होगी पूरी तू ज़रा मुझको बता ॥

दिल चुराकर यूँ  तो मेरा खुश बहुत होंगे मगर ।
एक पहलू में इन्हें रक्खोगे कैसे  तुम भला ॥

मौत की आहट सुनाई मुझको अब देने लगी ।
जीते जी सूरत तुम्हारी देख लूँ  बस दिलरुबा ॥

ख़ाब में आते हो जब भी झट से खुल जाती है आँख ।
और रह जाता हूँ मैं बस देखता का देखता ॥

मैं नहीं चाहूँ कि पूरी ख़ाब की ताबीर हो ।
पर मुसलसल ख़ाब का चलता रहे ये सिलसिला ॥

नाम तेरा अब लबों पर आ ही जाता दफ़अतन  ।
लोग कहते हैं की 'सैनी ' इश्क तुझको हो गया ॥

डा० सुरेन्द्र सैनी  

Wednesday, 25 September 2013

मशविरा

किसी का मशविरा गर मान लेता ।
तेरी नीयत को मैं पहचान लेता ॥

मेरी कश्ती को देता तू सहारा ।
मैं क्यूँ फिर ग़ैर का एहसान लेता ॥

तबाही का जो आलम चार सू है ।
सबक़ इससे नहीं इंसान लेता ॥

मुझे भी हौसला मिलता सफ़र में ।
अगर दिल में ख़ुदा को मान लेता ॥

तू दुश्मन से न कुछ भी मात खाता ।
कभी एयार से जो जान लेता ॥

बताता काश कोई एब मेरे ।
तरफ़ अपनी मैं ख़ंजर तान लेता ॥

मना 'सैनी ' तो कर सकता नहीं था ।
मनाने की अगर तू ठान लेता ॥

डॉ०  सुरेन्द्र सैनी                             

Sunday, 22 September 2013

की फ़र्क़ पैंदा है अब

सर से गंजा है तू और काना है तू छड्ड ओ यार की फ़र्क़ पैंदा है अब ।
घाघ आशिक़ बड़ा ही पुराना है तू छड्ड ओ यार की फ़र्क़ पैंदा है अब ॥

मेरे कूचे तू में रोज़ पिटता रहा कुछ असर तुझपे फिर भी कभी न हुआ ।
आज तक भी नहीं हार माना है तू छड्ड ओ यार की फ़र्क़ पैंदा है अब ॥

है लफंगा भी तू और लुच्चा भी तू एबदारी का बेताज है बादशाह ।
सारी शैतानियों का ख़ज़ाना है तू छड्ड ओ यार की फ़र्क़ पैंदा है अब ॥

ढूंढ लेता है सब देख  लेता है सब रोशनी हो या फिर हो अन्धेरा घना ।
एक उल्लू के जैसा सयाना है तू छड्ड ओ यार की फ़र्क़ पैंदा है अब ॥

यूँ  अंदर भरी खूब मक्कारियां तू हसीनों की करता हैं एयारियाँ ।
शक्ल-ओ-सूरत से तो सूफ़ियाना है तू छड्ड ओ यार की फ़र्क़ पैंदा है अब ॥

आशनाई रक़ीबों  से तेरी रही और मुझसे भी निस्बत दिखाता रहा ।
सब रक़ीबों का इक आशियाना है तू छड्ड ओ यार की फ़र्क़ पैंदा है अब ॥

रोज़ कहता है 'सैनी ' की ग़ज़लें बुरी उनका पढ़ना भी तुझको गवारा नहीं ।
फिर भी लगता उसी का दीवाना है तू छड्ड ओ यार की फ़र्क़ पैंदा है अब ॥

डा० सुरेन्द्र सैनी  

Thursday, 19 September 2013

हदें पार सभी करली हैं

सब्र करने की हदें पार सभी करली हैं ।
मन में घुटने की हदें पार सभी करली हैं ॥

अब तो तलवार उठाने की दिखाओ हिम्मत ।
आज डरने की हदें पार सभी करली हैं ॥

आओ उस साँप के फन को ही कुचल डालें अब ।
जिसने डसने की हदें पार सभी करली हैं ॥

क्यूँ डराते हो मुझे मौत का झाँसा देकर ।
मैंने मिटने की हदें पार सभी करली हैं ॥

अपनी ग़ैरत को बचाना ही है मक़्सिद अब तो ।
हमने लुटने की हदें पार सभी करली हैं ॥

एसे कमज़र्फ़ को अब पाठ पढ़ाना होगा ।
जिसने बिकने की हदें पार सभी करली हैं ॥

लोग 'सैनी' को सभी प्यार करें शिद्दत से ।
उसने लिखने की हदें पार सभी करली हैं ॥

डा०सुरेन्द्र सैनी  

Wednesday, 18 September 2013

सीख गए

जाने कब से वो सताने का हुनर सीख गए ।
साज़ बजते ही वो लचकाना कमर सीख गए ॥

यूँ  तो उस्ताद से हम भी सदा महरूम रहे ।
तुमसे सीखा नहीं है हमने मगर सीख गए ॥

रास्ते में हैं बहुत लोग सताने वाले ।
बाख़ुदा करना वो तो टेढ़ी नज़र सीख गए ॥

मेरे बच्चों को पता है मेरी मजबूरी का ।
दो ही रोटी में वो अब करना बसर सीख गए ॥

लोग हैं आज ज़माने के सयाने इतने ।
कुछ इधर मुँह से निकाला वो उधर सीख गए ॥

चौंक जायेगी किसी दिन ये अदब की दुन्या ।
शायरी करना वो कुछ ढंग से अगर सीख गए ॥

मैं समझता हूँ ये आसान बहुत है यारों ।
आज लिखना भी जो 'सैनी ' से बशर सीख गए ॥

डा० सुरेन्द्र सैनी  

Tuesday, 17 September 2013

ख़ामोश इश्क़

हर क़दम फूंक-फूंक रखता है ।
प्यार भी नाप कर वो करताहै ॥

नाम क्या है कहाँ वो रहता है ।
रोज़ ही ये सवाल उठता है ॥

कुछ भी सुनता नहीं वो दोबारा ।
सारी बातों को याद रखता है ॥

उसकी मजबूरियों का क़ाइल  हूँ ।
हो के पर्दानशीं जो रह्ता है ॥

प्यार जब भी करूँ  कहे अक्सर ।
छोडो झंझट में कौन पड़ता है ॥

सोचता है कईं महीने वो ।
तब कहीं एक लफ्ज़ लिखता है ॥

तीर बातों के नुकीले उसके ।
ये दिले नातवाँ  ही सहता है ॥

उसके ख़ामोश इश्क़ में 'सैनी'।
दिल में रोता है दिल में हंसता है ॥

डा० सुरेन्द्र सैनी  

Wednesday, 11 September 2013

उजाड़ बैठा है

कौन बस्ती उजाड़ बैठा है ।
सबसे रिश्ते बिगाड़ बैठा है ॥

एक दिन में फ़लक पे जा पहुँचा ।
एसा उसका जुगाड़ बैठा है ॥

प्यार में झिडकियां तो जायज़ हैं ।
पर मुझे वो लताड़ बैठा है ॥

अब सुलह क्या करेगा वो मुझसे ।
पिछली बातें उखाड़ बैठा है ॥

सामने अब तलक न आया है ।
बंद करके किवाड़ बैठा  है ॥

आज शागिर्द बैत बाज़ी में ।
शायरों को पछाड़ बैठा है ॥

आफ़तों के हर एक रस्ते में ।
बन के 'सैनी' पहाड़ बैठा है ॥

डा० सुरेन्द्र सैनी  

Tuesday, 10 September 2013

होश उड़ाने वाले

मेरे जीवन को यूँ बेहाल बनाने वाले ।
आज पूछेंगे तेरा हाल ज़माने वाले ॥

खूब मिलते हैं मुझे लोग बनाने वाले ।
मुझसे शायर को भी ग़ालिब सा बताने वाले ॥

मेरी ग़ज़लों पे तेरी एक नज़र हो जाती ।
रोज़ की रोज़ मुझे अपनी सुनाने वाले ॥

अब समझ आयी है मुझको ये तेरी शैतानी ।
बातों-बातों में मेरे दिल को चुराने वाले ॥

तेरी महफ़िल से मुझे कोई उठा कर देखे ।
अब तलक आ चुके कितने ही उठाने वाले ॥

काश कुछ सीख लेता मैं भी हुनर लिखने का ।
अब तो मिलते नहीं उस्ताद सिखाने वाले ॥

अक़्ल आयी  है अभी  ज़िंदगी में 'सैनी' को ।
गीत लिखता है सभी होश उड़ाने  वाले ॥

डा० सुरेन्द्र सैनी  

Sunday, 8 September 2013

तुम

मेरे ख़ाबों को तोड़ देना तुम ।
मेरी यादों को छोड़ देना तुम ॥

मेरी आहें अगर सुनाई दें ।
रुख़ हवाओं के मोड़ देना तुम ॥

प्यार करना गुनाह है तो फिर ।
मेरे खाते में जोड़ देना तुम ॥

जो तुम्हारी तरफ़ उठे उंगली ।
मेरी बाहें मरोड़ देना तुम ॥

तेरी आग़ोश में न सो जाऊं ।
मुझको कास कर झिंझोड़ देना तुम ॥

मेरे अश्कों के दाग़ शायद हों ।
धो के दामन निचोड़ देना तुम ॥

किससे  कैसा सलूक करना है ।
ये तो 'सैनी' पे छोड़ देना तुम ॥

डा० सुरेन्द्र सैनी  

Friday, 6 September 2013

मुस्कराहट का गहना

मुस्कराहट को गहना बना ।
ज़िंदगी से ग़मों को भगा ॥

इज्ज़तें ,शोहरतें ,ताकतें ।                              
इनके पीछे न ख़ुद को लगा ॥

आंच तुझ पर न कुछ आयेगी ।
ओढ़ ले दोस्तों की दुआ ॥

माँगता है क्यूँ तू और से ।
देने वाला है जब वो खुदा ॥

इश्क़  में मुब्तिला तो नहीं ।
आईने को ज़रा तू बता ।

तेरी  आँखें झुकी शर्म से ।                                          
जुर्म क्या आज तूने किया ॥

दूर शिकवे सभी आज कर ।
सामने आज 'सैनी' खडा ॥

डा० सुरेन्द्र सैनी