दी शरर को अचानक हवा ।
और ख़ुद हो गया लापता ॥
कौन सा एसा रस्ता बचा ।
जिस पे घर एक भी न जला ॥
एहमियत वो समझते नहीं ।
कैसा रिश्ता है कैसी वफ़ा ॥
ख़ौफ़ ही ख़ौफ़ हर सिम्त है ।
काश हो कोई मुश्किल कुशा ॥
ओढ़ कर सब लिबास-ए -धरम ।
बांटने चल पड़े हैं ख़ुदा ॥
लौट कर आयेगा फिर यहीं ।
आप चुन लें कोई रास्ता ॥
अम्न की बात 'सैनी' करे ।
कब शुरू हो मगर सिलसिला ॥
डा० सुरेन्द्र सैनी
और ख़ुद हो गया लापता ॥
कौन सा एसा रस्ता बचा ।
जिस पे घर एक भी न जला ॥
एहमियत वो समझते नहीं ।
कैसा रिश्ता है कैसी वफ़ा ॥
ख़ौफ़ ही ख़ौफ़ हर सिम्त है ।
काश हो कोई मुश्किल कुशा ॥
ओढ़ कर सब लिबास-ए -धरम ।
बांटने चल पड़े हैं ख़ुदा ॥
लौट कर आयेगा फिर यहीं ।
आप चुन लें कोई रास्ता ॥
अम्न की बात 'सैनी' करे ।
कब शुरू हो मगर सिलसिला ॥
डा० सुरेन्द्र सैनी
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