उर्वशी हो या मेनका हो तुम ।
लोग कहते हैं लाइबा हो तुम ॥
आरज़ूओँ का मरहला हो तुम ।
जिंदगानी का फ़ल्सफ़ा हो तुम ॥
मैं तो प्यासा जनम-जनम का हूँ ।
साक़ी हो तुम कि मैकदा हो तुम ॥
सोचता हूँ जिसे तसव्वुर में ।
मेरे ख़ाबों की दिलरुबा हो तुम ॥
मंज़िलों का मक़ाम है तुम तक ।
मंज़िल -ए -इश्क़ बाख़ुदा हो तुम ॥
है तुम्हारा ही अक्स तो सब में ।
हुस्न का एक क़ायदा हो तुम ॥
अब भी उसका वुजूद क़ाइम है ।
आज 'सैनी' का हौसला हो तुम ॥
लाइबा ---------जन्नत की हूर
डा० सुरेन्द्र सैनी
लोग कहते हैं लाइबा हो तुम ॥
आरज़ूओँ का मरहला हो तुम ।
जिंदगानी का फ़ल्सफ़ा हो तुम ॥
मैं तो प्यासा जनम-जनम का हूँ ।
साक़ी हो तुम कि मैकदा हो तुम ॥
सोचता हूँ जिसे तसव्वुर में ।
मेरे ख़ाबों की दिलरुबा हो तुम ॥
मंज़िलों का मक़ाम है तुम तक ।
मंज़िल -ए -इश्क़ बाख़ुदा हो तुम ॥
है तुम्हारा ही अक्स तो सब में ।
हुस्न का एक क़ायदा हो तुम ॥
अब भी उसका वुजूद क़ाइम है ।
आज 'सैनी' का हौसला हो तुम ॥
लाइबा ---------जन्नत की हूर
डा० सुरेन्द्र सैनी
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