Sunday, 13 October 2013

लाइबा हो तुम

उर्वशी हो या मेनका हो तुम ।
लोग कहते हैं लाइबा हो तुम ॥

आरज़ूओँ का मरहला हो तुम ।
जिंदगानी का फ़ल्सफ़ा हो तुम ॥

मैं तो प्यासा जनम-जनम का हूँ ।
साक़ी हो तुम कि मैकदा हो तुम ॥

सोचता हूँ जिसे तसव्वुर में ।
मेरे ख़ाबों की दिलरुबा हो तुम ॥

मंज़िलों का मक़ाम है तुम तक ।
मंज़िल -ए -इश्क़ बाख़ुदा हो तुम ॥

है तुम्हारा ही अक्स तो सब में ।
हुस्न का एक क़ायदा हो तुम ॥

अब भी उसका वुजूद क़ाइम है ।
आज 'सैनी' का हौसला हो तुम ॥


 लाइबा ---------जन्नत की हूर

डा० सुरेन्द्र सैनी

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