कोडियों में बिके हैं लोग न जाने क्यूँ अब ।
अपने क़द से गिरे हैं लोग न जाने क्यूँ अब ॥
सब ही चेहरों पे मुखौटे लगा के फिरते हैं ।
यूँ समझ से परे हैं लोग न जाने क्यूँ अब ॥
देख कर मेरी निज़ामत का असर महफ़िल में ।
मुझसे जलने लगे हैं लोग न जाने क्यूँ अब ॥
इक ज़माना था सभी का था मुनव्वर चेहरा ।
सब ही दाग़ी बने हैं लोग न जाने क्यूँ अब ॥
सीधी सी बात नहीं दिल में उतर पाती है ।
अपनी ज़िद पे अड़े हैं लोग न जाने क्यूँ अब ॥
कौन आया है पडौसी को न कोई मतलब ।
यार इतने बुरे हैं लोग न जाने क्यूँ अब ॥
आज 'सैनी'को नज़र आ रहा ख़तरा उनसे ।
जो हसद से भरे हैं लोग न जाने क्यूँ अब ॥
डा० सुरेन्द्र सैनी
अपने क़द से गिरे हैं लोग न जाने क्यूँ अब ॥
सब ही चेहरों पे मुखौटे लगा के फिरते हैं ।
यूँ समझ से परे हैं लोग न जाने क्यूँ अब ॥
देख कर मेरी निज़ामत का असर महफ़िल में ।
मुझसे जलने लगे हैं लोग न जाने क्यूँ अब ॥
इक ज़माना था सभी का था मुनव्वर चेहरा ।
सब ही दाग़ी बने हैं लोग न जाने क्यूँ अब ॥
सीधी सी बात नहीं दिल में उतर पाती है ।
अपनी ज़िद पे अड़े हैं लोग न जाने क्यूँ अब ॥
कौन आया है पडौसी को न कोई मतलब ।
यार इतने बुरे हैं लोग न जाने क्यूँ अब ॥
आज 'सैनी'को नज़र आ रहा ख़तरा उनसे ।
जो हसद से भरे हैं लोग न जाने क्यूँ अब ॥
डा० सुरेन्द्र सैनी
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