Monday, 28 October 2013

न जाने क्यूँ अब

कोडियों में बिके हैं लोग न जाने क्यूँ  अब ।
अपने क़द से गिरे हैं लोग न जाने क्यूँ  अब ॥

सब ही चेहरों पे मुखौटे लगा के फिरते हैं ।
यूँ समझ से परे हैं लोग न जाने क्यूँ  अब ॥

देख कर मेरी निज़ामत का असर महफ़िल में ।
मुझसे जलने लगे हैं लोग न जाने क्यूँ  अब ॥

इक ज़माना था सभी का था मुनव्वर चेहरा ।
सब ही दाग़ी बने हैं लोग न जाने क्यूँ  अब ॥

सीधी सी बात नहीं दिल में उतर पाती है ।
अपनी ज़िद पे अड़े हैं लोग न जाने क्यूँ  अब ॥

कौन आया है पडौसी को न कोई मतलब ।
यार इतने बुरे हैं लोग न जाने क्यूँ  अब ॥

आज 'सैनी'को नज़र आ रहा ख़तरा उनसे ।
जो हसद से भरे हैं लोग न जाने क्यूँ  अब ॥

डा० सुरेन्द्र सैनी   

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