वो इशारा समझता नहीं ।
प्यार दिल का समझता नहीं ॥
कब से प्यासा हूँ दीदार का ।
दर्द मेरा समझता नहीं ॥
उसको कैसे दिलाऊँ यक़ीन ।
मुझको अपना समझता नहीं ॥
सब ही कहते हैं उसको बुरा ।
मैं तो एसा समझता नहीं ॥
लालची हो गया है बशर ।
हक़ किसी का समझता नहीं ॥
ताल देता है सुन कर वो बात ।
वज़्न उसका समझता नहीं ॥
बेसुरा राग 'सैनी' का है ।
पर बेचारा समझता नहीं ॥
डा० सुरेन्द्र सैनी
प्यार दिल का समझता नहीं ॥
कब से प्यासा हूँ दीदार का ।
दर्द मेरा समझता नहीं ॥
उसको कैसे दिलाऊँ यक़ीन ।
मुझको अपना समझता नहीं ॥
सब ही कहते हैं उसको बुरा ।
मैं तो एसा समझता नहीं ॥
लालची हो गया है बशर ।
हक़ किसी का समझता नहीं ॥
ताल देता है सुन कर वो बात ।
वज़्न उसका समझता नहीं ॥
बेसुरा राग 'सैनी' का है ।
पर बेचारा समझता नहीं ॥
डा० सुरेन्द्र सैनी
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