Wednesday, 2 October 2013

माँ की नज़्र

अपने हिस्से की भी माँ मुझको खिला देती थी ।
ख़ुद ने खाली है वो वालिद को बता  देती थी ॥

मैं भटकने लगा जब-जब भी कभी रस्ते से ।
खींच कर मुझको माँ रस्ते पे लगा  देती थी ॥

मेरी शैतानियों से होक ख़फ़ा माँ अक्सर ।
पीट कर मेरा बुरा हाल बना  देती थी ॥

ख़्वाहिशें  मैंने अगर सामने माँ के रख दी ।
सबको मंजूर वो वालिद से करा  देती थी ॥

मुझको जब-जब किसी ने टेढ़ी नज़र से देखा ।
उसकी पल भर  में वो औक़ात दिखा  देती थी ॥

मैं परेशानियों में जब भी घिरा होता था ।
माँ  मुझे थपकियाँ देकर के सुला  देती थी ॥

आज भी याद है 'सैनी' को वो सारी बातें ।
माँ मुझे भाइयों बहनों से सवा  देती थी ॥

डा० सुरेन्द्र सैनी  

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