अपने हिस्से की भी माँ मुझको खिला देती थी ।
ख़ुद ने खाली है वो वालिद को बता देती थी ॥
मैं भटकने लगा जब-जब भी कभी रस्ते से ।
खींच कर मुझको माँ रस्ते पे लगा देती थी ॥
मेरी शैतानियों से होक ख़फ़ा माँ अक्सर ।
पीट कर मेरा बुरा हाल बना देती थी ॥
ख़्वाहिशें मैंने अगर सामने माँ के रख दी ।
सबको मंजूर वो वालिद से करा देती थी ॥
मुझको जब-जब किसी ने टेढ़ी नज़र से देखा ।
उसकी पल भर में वो औक़ात दिखा देती थी ॥
मैं परेशानियों में जब भी घिरा होता था ।
माँ मुझे थपकियाँ देकर के सुला देती थी ॥
आज भी याद है 'सैनी' को वो सारी बातें ।
माँ मुझे भाइयों बहनों से सवा देती थी ॥
डा० सुरेन्द्र सैनी
ख़ुद ने खाली है वो वालिद को बता देती थी ॥
मैं भटकने लगा जब-जब भी कभी रस्ते से ।
खींच कर मुझको माँ रस्ते पे लगा देती थी ॥
मेरी शैतानियों से होक ख़फ़ा माँ अक्सर ।
पीट कर मेरा बुरा हाल बना देती थी ॥
ख़्वाहिशें मैंने अगर सामने माँ के रख दी ।
सबको मंजूर वो वालिद से करा देती थी ॥
मुझको जब-जब किसी ने टेढ़ी नज़र से देखा ।
उसकी पल भर में वो औक़ात दिखा देती थी ॥
मैं परेशानियों में जब भी घिरा होता था ।
माँ मुझे थपकियाँ देकर के सुला देती थी ॥
आज भी याद है 'सैनी' को वो सारी बातें ।
माँ मुझे भाइयों बहनों से सवा देती थी ॥
डा० सुरेन्द्र सैनी
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