Thursday, 10 October 2013

प्यार से सस्ता क्या है


सोचता हूँ जहाँ में प्यार से सस्ता क्या है ।
प्यार के बिन किसी के पास में बचता क्या है ॥

बेतकल्लुफ़ जो हो के नाम तेरा ले बैठा ।
सबने पूछा कि  मेरा तुझसे ये रिश्ता क्या है ॥

तेरी मर्ज़ी पे मेरे प्यार की क़िस्मत ठहरी ।
अब भला और मेरे पास में रस्ता क्या है ॥

दिल लिया आपने और आँसू गए फ़ुर्क़त में ।
एक आशिक़ के भला साथ में रहता क्या है ॥

लूट कर ले चलो दुन्या से दिलों की दौलत ।
एसे ज़र के सिवा बस साथ में चलता क्या है ॥

देख के भोली सी सूरत पे न हारो सब कुछ ।
ज़िह्न में कब किसी के क्या पता पलता क्या है ॥

चोट खाए हुए शायर के क़लम से पूछो ।
डूब के लफ़्ज़ों के दरिया में वो लिखता क्या है ॥

इश्क़ में ख़ैर मनाओ मियाँ अपनी जाँ की ।
हुस्न की आग के आगे भला टिकता क्या है ॥

आप मसरूफ़ हैं दुन्या जहाँ की बातों में ।
ग़ौर से सुनियेगा 'सैनी'को ये कहता क्या है ॥

डा० सुरेन्द्र सैनी

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