Friday, 18 October 2013

बाज़ी मार जाता हूँ

अगरचे आम लोगों से तो बाज़ी मार जाता  हूँ ।
मगर मैं अपने प्यारों से हमेशा हार  जाता  हूँ ॥

करूँ मैं दूसरों को हर्ट ये मक़्सिद नहीं मेरा ।
नहीं शर्म-ओ -हया के दायरे के पार जाता  हूँ ॥

मुझे मालूम है इन्कार ही मुझको करेगा वो ।
मैं ठहरा बावला उस दर पे बारम्बार  जाता  हूँ ॥

ज़रा सी बात को लेकर मुझे अपनों ने ठुकराया ।
तभी तो ढूँढने ग़ैरों में अक्सर प्यार  जाता  हूँ ॥

नशा तारी है मुझ पर इस तरह कुछ इश्क़  का तेरे ।
तेरी ख़ुशबू के पीछे छोड़ कर घर -बार  जाता  हूँ ॥

किसी सहरा में मैं प्यासे हिरन सा ढूँढने पानी ।
कभी इस पार आता हूँ कभी उस पार  जाता  हूँ ॥

अगरचे रोज़ 'सैनी' मुझको समझाता बहुत दिल से ।
सराबों में मगर फिर भी मैं पड के  हार  जाता  हूँ ॥

डा० सुरेन्द्र सैनी  

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