अगरचे आम लोगों से तो बाज़ी मार जाता हूँ ।
मगर मैं अपने प्यारों से हमेशा हार जाता हूँ ॥
करूँ मैं दूसरों को हर्ट ये मक़्सिद नहीं मेरा ।
नहीं शर्म-ओ -हया के दायरे के पार जाता हूँ ॥
मुझे मालूम है इन्कार ही मुझको करेगा वो ।
मैं ठहरा बावला उस दर पे बारम्बार जाता हूँ ॥
ज़रा सी बात को लेकर मुझे अपनों ने ठुकराया ।
तभी तो ढूँढने ग़ैरों में अक्सर प्यार जाता हूँ ॥
नशा तारी है मुझ पर इस तरह कुछ इश्क़ का तेरे ।
तेरी ख़ुशबू के पीछे छोड़ कर घर -बार जाता हूँ ॥
किसी सहरा में मैं प्यासे हिरन सा ढूँढने पानी ।
कभी इस पार आता हूँ कभी उस पार जाता हूँ ॥
अगरचे रोज़ 'सैनी' मुझको समझाता बहुत दिल से ।
सराबों में मगर फिर भी मैं पड के हार जाता हूँ ॥
डा० सुरेन्द्र सैनी
मगर मैं अपने प्यारों से हमेशा हार जाता हूँ ॥
करूँ मैं दूसरों को हर्ट ये मक़्सिद नहीं मेरा ।
नहीं शर्म-ओ -हया के दायरे के पार जाता हूँ ॥
मुझे मालूम है इन्कार ही मुझको करेगा वो ।
मैं ठहरा बावला उस दर पे बारम्बार जाता हूँ ॥
ज़रा सी बात को लेकर मुझे अपनों ने ठुकराया ।
तभी तो ढूँढने ग़ैरों में अक्सर प्यार जाता हूँ ॥
नशा तारी है मुझ पर इस तरह कुछ इश्क़ का तेरे ।
तेरी ख़ुशबू के पीछे छोड़ कर घर -बार जाता हूँ ॥
किसी सहरा में मैं प्यासे हिरन सा ढूँढने पानी ।
कभी इस पार आता हूँ कभी उस पार जाता हूँ ॥
अगरचे रोज़ 'सैनी' मुझको समझाता बहुत दिल से ।
सराबों में मगर फिर भी मैं पड के हार जाता हूँ ॥
डा० सुरेन्द्र सैनी
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