Thursday, 17 October 2013

कंगन

किसको इलज़ाम दूँ मैं ख़ुद की तबाही के लिए ।
सब के आये हैं पयाम अपनी सफ़ाई के लिए ॥

मुझको फ़रमान सुनाया है इबादत न करो ।
मैंने माँगी जो दुआ सबकी भलाई के लिए ॥

आज भी मुझको चिढायें वो गुलाबी कंगन ।
जो ख़रीदे थे कभी उसकी कलाई के लिए ॥

जान देता है हमेशा ही वो राजा के लिए ।
कोई राजा न सुना मरता सिपाही के लिए ॥

दो घड़ी बैठ तू भी नाम खुदा का लेले ।
ज़िंदगी सारी पडी ख़ूब  कमाई के लिए ॥

आज भाई ही बना जान का दुश्मन कैसा ।
जान देता था जो भाई कभी भाई के लिए ॥

जुर्म करके भी वो इनआम  के हक़दार बने ।
और अच्छाई बची मेरी बुराई के लिए ॥

मैं कलम ख़ून -ए -जिगर में ही डुबाकर अक्सर ।
रोज़ लिखता रहा हूँ उनको सियाही के लिए ॥

कौन से बिल में छुपे जाके बताओ 'सैनी' ।
रोज़ आता है महाजन जो उगाही के लिए ॥

डा० सुरेन्द्र सैनी  

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