किसको इलज़ाम दूँ मैं ख़ुद की तबाही के लिए ।
सब के आये हैं पयाम अपनी सफ़ाई के लिए ॥
मुझको फ़रमान सुनाया है इबादत न करो ।
मैंने माँगी जो दुआ सबकी भलाई के लिए ॥
आज भी मुझको चिढायें वो गुलाबी कंगन ।
जो ख़रीदे थे कभी उसकी कलाई के लिए ॥
जान देता है हमेशा ही वो राजा के लिए ।
कोई राजा न सुना मरता सिपाही के लिए ॥
दो घड़ी बैठ तू भी नाम खुदा का लेले ।
ज़िंदगी सारी पडी ख़ूब कमाई के लिए ॥
आज भाई ही बना जान का दुश्मन कैसा ।
जान देता था जो भाई कभी भाई के लिए ॥
जुर्म करके भी वो इनआम के हक़दार बने ।
और अच्छाई बची मेरी बुराई के लिए ॥
मैं कलम ख़ून -ए -जिगर में ही डुबाकर अक्सर ।
रोज़ लिखता रहा हूँ उनको सियाही के लिए ॥
कौन से बिल में छुपे जाके बताओ 'सैनी' ।
रोज़ आता है महाजन जो उगाही के लिए ॥
डा० सुरेन्द्र सैनी
सब के आये हैं पयाम अपनी सफ़ाई के लिए ॥
मुझको फ़रमान सुनाया है इबादत न करो ।
मैंने माँगी जो दुआ सबकी भलाई के लिए ॥
आज भी मुझको चिढायें वो गुलाबी कंगन ।
जो ख़रीदे थे कभी उसकी कलाई के लिए ॥
जान देता है हमेशा ही वो राजा के लिए ।
कोई राजा न सुना मरता सिपाही के लिए ॥
दो घड़ी बैठ तू भी नाम खुदा का लेले ।
ज़िंदगी सारी पडी ख़ूब कमाई के लिए ॥
आज भाई ही बना जान का दुश्मन कैसा ।
जान देता था जो भाई कभी भाई के लिए ॥
जुर्म करके भी वो इनआम के हक़दार बने ।
और अच्छाई बची मेरी बुराई के लिए ॥
मैं कलम ख़ून -ए -जिगर में ही डुबाकर अक्सर ।
रोज़ लिखता रहा हूँ उनको सियाही के लिए ॥
कौन से बिल में छुपे जाके बताओ 'सैनी' ।
रोज़ आता है महाजन जो उगाही के लिए ॥
डा० सुरेन्द्र सैनी
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