Tuesday, 1 October 2013

प्यार देता हूँ

प्यार देता हूँ प्यार लेता हूँ ।
मैं नहीं कुछ उधार लेता हूँ ॥

ग़लतियाँ रोज़ गरचे होती हैं ।
फिर भी उनको सुधार लेता हूँ ॥

कुछ भी हासिल नहीं मगर फिर भी ।
ज़िंदगी मैं गुज़ार लेता हूँ ॥

बिखरे टुकड़े समेट कर अपने ।
पैरहन को सँवार लेता हूँ ॥

वार मेरी अना पे कर दे जो ।
उसकी गर्दन उतार लेता हूँ ॥

ज़ात भँवरे की है नहीं फिर भी ।
प्रेम रस की फुहार लेता हूँ ॥

रंज-ओ-ग़म जब कभी सताते हैं ।
'सैनी'को बस पुकार लेता हूँ ॥

डा० सुरेन्द्र सैनी  

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