Thursday, 26 September 2013

ख़ाबों का सिलसिला

पास आते ही तुम्हारे हो गया इक हादिसा ।
हम ठगे से रह गए जब दिल हुआ ये आपका ॥

दो घड़ी बैठूं मैं तेरे गेसुओं की छावँ में ।
आरज़ू कब होगी पूरी तू ज़रा मुझको बता ॥

दिल चुराकर यूँ  तो मेरा खुश बहुत होंगे मगर ।
एक पहलू में इन्हें रक्खोगे कैसे  तुम भला ॥

मौत की आहट सुनाई मुझको अब देने लगी ।
जीते जी सूरत तुम्हारी देख लूँ  बस दिलरुबा ॥

ख़ाब में आते हो जब भी झट से खुल जाती है आँख ।
और रह जाता हूँ मैं बस देखता का देखता ॥

मैं नहीं चाहूँ कि पूरी ख़ाब की ताबीर हो ।
पर मुसलसल ख़ाब का चलता रहे ये सिलसिला ॥

नाम तेरा अब लबों पर आ ही जाता दफ़अतन  ।
लोग कहते हैं की 'सैनी ' इश्क तुझको हो गया ॥

डा० सुरेन्द्र सैनी  

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