मेरे ख़ाबों को तोड़ देना तुम ।
मेरी यादों को छोड़ देना तुम ॥
मेरी आहें अगर सुनाई दें ।
रुख़ हवाओं के मोड़ देना तुम ॥
प्यार करना गुनाह है तो फिर ।
मेरे खाते में जोड़ देना तुम ॥
जो तुम्हारी तरफ़ उठे उंगली ।
मेरी बाहें मरोड़ देना तुम ॥
तेरी आग़ोश में न सो जाऊं ।
मुझको कास कर झिंझोड़ देना तुम ॥
मेरे अश्कों के दाग़ शायद हों ।
धो के दामन निचोड़ देना तुम ॥
किससे कैसा सलूक करना है ।
ये तो 'सैनी' पे छोड़ देना तुम ॥
डा० सुरेन्द्र सैनी
मेरी यादों को छोड़ देना तुम ॥
मेरी आहें अगर सुनाई दें ।
रुख़ हवाओं के मोड़ देना तुम ॥
प्यार करना गुनाह है तो फिर ।
मेरे खाते में जोड़ देना तुम ॥
जो तुम्हारी तरफ़ उठे उंगली ।
मेरी बाहें मरोड़ देना तुम ॥
तेरी आग़ोश में न सो जाऊं ।
मुझको कास कर झिंझोड़ देना तुम ॥
मेरे अश्कों के दाग़ शायद हों ।
धो के दामन निचोड़ देना तुम ॥
किससे कैसा सलूक करना है ।
ये तो 'सैनी' पे छोड़ देना तुम ॥
डा० सुरेन्द्र सैनी
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