Sunday, 8 September 2013

तुम

मेरे ख़ाबों को तोड़ देना तुम ।
मेरी यादों को छोड़ देना तुम ॥

मेरी आहें अगर सुनाई दें ।
रुख़ हवाओं के मोड़ देना तुम ॥

प्यार करना गुनाह है तो फिर ।
मेरे खाते में जोड़ देना तुम ॥

जो तुम्हारी तरफ़ उठे उंगली ।
मेरी बाहें मरोड़ देना तुम ॥

तेरी आग़ोश में न सो जाऊं ।
मुझको कास कर झिंझोड़ देना तुम ॥

मेरे अश्कों के दाग़ शायद हों ।
धो के दामन निचोड़ देना तुम ॥

किससे  कैसा सलूक करना है ।
ये तो 'सैनी' पे छोड़ देना तुम ॥

डा० सुरेन्द्र सैनी  

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