जाने कब से वो सताने का हुनर सीख गए ।
साज़ बजते ही वो लचकाना कमर सीख गए ॥
यूँ तो उस्ताद से हम भी सदा महरूम रहे ।
तुमसे सीखा नहीं है हमने मगर सीख गए ॥
रास्ते में हैं बहुत लोग सताने वाले ।
बाख़ुदा करना वो तो टेढ़ी नज़र सीख गए ॥
मेरे बच्चों को पता है मेरी मजबूरी का ।
दो ही रोटी में वो अब करना बसर सीख गए ॥
लोग हैं आज ज़माने के सयाने इतने ।
कुछ इधर मुँह से निकाला वो उधर सीख गए ॥
चौंक जायेगी किसी दिन ये अदब की दुन्या ।
शायरी करना वो कुछ ढंग से अगर सीख गए ॥
मैं समझता हूँ ये आसान बहुत है यारों ।
आज लिखना भी जो 'सैनी ' से बशर सीख गए ॥
डा० सुरेन्द्र सैनी
साज़ बजते ही वो लचकाना कमर सीख गए ॥
यूँ तो उस्ताद से हम भी सदा महरूम रहे ।
तुमसे सीखा नहीं है हमने मगर सीख गए ॥
रास्ते में हैं बहुत लोग सताने वाले ।
बाख़ुदा करना वो तो टेढ़ी नज़र सीख गए ॥
मेरे बच्चों को पता है मेरी मजबूरी का ।
दो ही रोटी में वो अब करना बसर सीख गए ॥
लोग हैं आज ज़माने के सयाने इतने ।
कुछ इधर मुँह से निकाला वो उधर सीख गए ॥
चौंक जायेगी किसी दिन ये अदब की दुन्या ।
शायरी करना वो कुछ ढंग से अगर सीख गए ॥
मैं समझता हूँ ये आसान बहुत है यारों ।
आज लिखना भी जो 'सैनी ' से बशर सीख गए ॥
डा० सुरेन्द्र सैनी
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