क़ज़ा से डर गया होता अगर ग़ज़लें नहीं कहता ।
कभी का मर गया होता अगर ग़ज़लें नहीं कहता ॥
हज़ारों रास्ते थे सामने जब ज़र कमाने के ।
कमाई कर गया होता अगर ग़ज़लें नहीं कहता ॥
ज़माने के फ़रेब -ओ-मक्र पर जब ग़ौर करता हूँ ।
ज़माने पर गया होता अगर ग़ज़लें नहीं कहता ॥
असर जब हुस्न की रानाइयाँ दिल पर लगी करने ।
मेरा जी भर गया होता अगर ग़ज़लें नहीं कहता ॥
मुहब्बत करने वाले मुझको दुन्या में अब इतने हैं ।
न यूँ ऊपर गया होता अगर ग़ज़लें नहीं कहता ॥
जहालत को ज़हादत पर नहीं होने दिया क़ाबिज़ ।
मैं बन क़ाफ़र गया होता अगर ग़ज़लें नहीं कहता ॥
सुखन में बात आपस की हमेशा कह गया 'सैनी '।
तो क्या कह कर गया होता अगर ग़ज़लें नहीं कहता ॥
डा०सुरेन्द्र सैनी
कभी का मर गया होता अगर ग़ज़लें नहीं कहता ॥
हज़ारों रास्ते थे सामने जब ज़र कमाने के ।
कमाई कर गया होता अगर ग़ज़लें नहीं कहता ॥
ज़माने के फ़रेब -ओ-मक्र पर जब ग़ौर करता हूँ ।
ज़माने पर गया होता अगर ग़ज़लें नहीं कहता ॥
असर जब हुस्न की रानाइयाँ दिल पर लगी करने ।
मेरा जी भर गया होता अगर ग़ज़लें नहीं कहता ॥
मुहब्बत करने वाले मुझको दुन्या में अब इतने हैं ।
न यूँ ऊपर गया होता अगर ग़ज़लें नहीं कहता ॥
जहालत को ज़हादत पर नहीं होने दिया क़ाबिज़ ।
मैं बन क़ाफ़र गया होता अगर ग़ज़लें नहीं कहता ॥
सुखन में बात आपस की हमेशा कह गया 'सैनी '।
तो क्या कह कर गया होता अगर ग़ज़लें नहीं कहता ॥
डा०सुरेन्द्र सैनी
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