Wednesday, 23 October 2013

अगर ग़ज़लें नहीं कहता

क़ज़ा से डर गया होता अगर ग़ज़लें नहीं कहता । 
कभी का मर गया होता अगर ग़ज़लें नहीं कहता ॥ 

हज़ारों रास्ते थे सामने जब ज़र कमाने के । 
कमाई कर गया होता अगर ग़ज़लें नहीं कहता ॥ 

ज़माने के फ़रेब -ओ-मक्र पर जब ग़ौर करता हूँ । 
ज़माने पर गया होता अगर ग़ज़लें नहीं कहता ॥ 

असर जब हुस्न की रानाइयाँ दिल पर लगी करने । 
मेरा जी भर गया होता अगर ग़ज़लें नहीं कहता ॥ 

मुहब्बत करने वाले मुझको दुन्या में अब इतने हैं । 
न यूँ ऊपर गया होता अगर ग़ज़लें नहीं कहता ॥ 

जहालत को ज़हादत पर नहीं होने दिया क़ाबिज़ । 
मैं बन क़ाफ़र गया होता अगर ग़ज़लें नहीं कहता ॥ 

सुखन में बात आपस की हमेशा कह गया 'सैनी '। 
तो क्या कह कर गया होता अगर ग़ज़लें नहीं कहता ॥ 

डा०सुरेन्द्र सैनी  
 

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