इन गुज़श्ता तमाम सालों में ।
अक्स तेरा रहा ख़यालों में ॥
नाम उसका निकल गया मुँह से ।
और मैं घिर गया सवालों में ॥
आजकल हैं वो किस बलंदी पर ।
रोज़ ही छप रहा रिसालों में ॥
तीरगी में तो साफ़ सुथरा था ।
दाग़ लगवा लिए उजालों में ।
जब से देखा तुम्हे हुआ शामिल ।
नाम मेरा भी इश्क़ वालों में ॥
मैं दिखाता हूँ प्यार के रस्ते ।
मुझको रक्खो न बंद तालों में ॥
आज 'सैनी' से पूछना जा कर ।
किसके वो खो गया ख्यालों में ॥
डा० सुरेन्द्र सैनी
अक्स तेरा रहा ख़यालों में ॥
नाम उसका निकल गया मुँह से ।
और मैं घिर गया सवालों में ॥
आजकल हैं वो किस बलंदी पर ।
रोज़ ही छप रहा रिसालों में ॥
तीरगी में तो साफ़ सुथरा था ।
दाग़ लगवा लिए उजालों में ।
जब से देखा तुम्हे हुआ शामिल ।
नाम मेरा भी इश्क़ वालों में ॥
मैं दिखाता हूँ प्यार के रस्ते ।
मुझको रक्खो न बंद तालों में ॥
आज 'सैनी' से पूछना जा कर ।
किसके वो खो गया ख्यालों में ॥
डा० सुरेन्द्र सैनी
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