मैं अपनी क़िस्मत के आगे जब-जब बेबस होता हूँ ।
तुम क्या जानो तन्हाई में कितने आँसू रोता हूँ ॥
जिन नग़मों पे सुनने वाले अक्सर झूमा करते हैं ।
मैं रातों में उनके ही ताने-बाने में सोता हूँ ॥
जाने क्यूँ उगते हैं कांटे मेरे नन्हें पौधों पर ।
फूलों के बीजों को मैं इतनी शिद्दत से बोता हूँ ॥
घाइल हो जाता है सीना अपनों की बाते सुनकर ।
ख़ूँ आलूदा ज़ख्म-ए -दिल को अश्क-ए -ग़म से धोता हूँ ॥
सच्चाई से जो मिलता है बच्चों को नाकाफ़ी है ।
काम आयेगी कब ख़ुद्दारी रोज़ाना जो धोता हों ॥
अपनी नाकामी पर जब भी बढ़ जाती है बेचैनी ।
खिसियाहट में पागल होकर अपना आपा खोता हूँ ॥
'सैनी' किससे कब रूठा हूँ कोई तो ये बतलाये ।
सबको अपना-अपना बोलूं चाबी वाला तोता हूँ ॥
डा० सुरेन्द्र सैनी
तुम क्या जानो तन्हाई में कितने आँसू रोता हूँ ॥
जिन नग़मों पे सुनने वाले अक्सर झूमा करते हैं ।
मैं रातों में उनके ही ताने-बाने में सोता हूँ ॥
जाने क्यूँ उगते हैं कांटे मेरे नन्हें पौधों पर ।
फूलों के बीजों को मैं इतनी शिद्दत से बोता हूँ ॥
घाइल हो जाता है सीना अपनों की बाते सुनकर ।
ख़ूँ आलूदा ज़ख्म-ए -दिल को अश्क-ए -ग़म से धोता हूँ ॥
सच्चाई से जो मिलता है बच्चों को नाकाफ़ी है ।
काम आयेगी कब ख़ुद्दारी रोज़ाना जो धोता हों ॥
अपनी नाकामी पर जब भी बढ़ जाती है बेचैनी ।
खिसियाहट में पागल होकर अपना आपा खोता हूँ ॥
'सैनी' किससे कब रूठा हूँ कोई तो ये बतलाये ।
सबको अपना-अपना बोलूं चाबी वाला तोता हूँ ॥
डा० सुरेन्द्र सैनी
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