Tuesday, 3 December 2013

दिल में बसे हुए हैं

हमारे दिल में बसे  हुए हैं ।
तभी तो अब तक बचे हुए हैं ॥

जहां का खाया नमक हमेशा ।
वहीं पे फ़ितने किए हुए हैं ॥

बताना होश आने पे तबीयत ।
अभी तो दारू पिए हुए हैं ॥

यहाँ हैं लाशें दबी किसी की  ।
जहाँ अकड़ कर खड़े हुए हैं ॥

दुआओ में तुमको याद रक्खा ।
ख्यालों में क्यूँ बुरे हुए हैं ॥

जहाँ पे गंदी हुई सियासत ।
वहाँ पे झगडे बड़े हुए हैं ॥

कभी जो तुमने दिए जफ़ा के ।
दिलों पे नश्तर गुदे हुए हैं ॥

किसी के धंदे किसी के फ़ंदे ।
गले में अपने पड़े हुए हैं ॥

अदा पे जिसकी मिटा है 'सैनी'।
उसी के आंसू दिए हुए हैं ॥  

डा०सुरेन्द्र सैनी  

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