Wednesday, 11 December 2013

नामवर आशिक़

किसी ने प्यार से महका गुलाब भेजा है ।
बड़े ख़ुलूस से ख़त का जवाब भेजा है ॥

कहीं पे उनको गिरानी है आज तो बिजली ।
फ़लक से चाँद ने उनको शबाब भेजा है ॥

सुना है क़र्ज़ वो रखते नहीं किसी का भी ।
मेरी वफाओं का सारा हिसाब भेजा है ॥

लिखूं मैं कुछ तो सिफ़ारिश किताब पे उनकी ।
तभी तो एक क़लम -मय -किताब भेजा है ॥

हया के पीछे छुपा रक्खी शोखियाँ सारी ।
ख़ुदा ने ख़ास ये देकर हिजाब भेजा है ॥

कहा है रोज़ ही मुझसे मिला करेंगे वो ।
दिखा के मुझको नया आज ख़ाब भेजा है ॥

जला न दे कहीं ये धूप गोरे गालों को ।
हवा ने साये की ख़ातिर सहाब भेजा है ॥

बना हूँ मैं तो आज एक नामवर आशिक़ ।
ये दोस्तों ने मुझे अब ख़िताब भेजा है ॥

बड़े ग़ज़ब का मुक़द्दर दिया इलाही ने ।
बना के 'सैनी' को ख़ाना -ख़राब भेजा है ॥

डा० सुरेन्द्र सैनी   

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