Monday, 30 December 2013

मुक़द्दर मेरा

जाने कब नींद से जागेगा  मुक़द्दर मेरा ।
और ये कितना रुलाएगा  मुक़द्दर मेरा ॥

रोज़ की रोज़ चलाता है नयी राहों पर ।
कौन से मोड़ पे ठहरेगा मुक़द्दर मेरा ॥

मेरे हाथों की लकीरों से हुआ है ग़ायब ।
लौट के क्या कभी आयेगा मुक़द्दर मेरा ॥

मैं थका हूँ बना के रोज़ नयी तदबीरें ।
कैसे अब देखिये संवरेगा मुक़द्दर मेरा ॥

मैं भी उम्मीद किये बैठा हूँ अब उस दिन जब ।
वक़्त के साज़ पे नाचेगा मुक़द्दर मेरा ॥

हाल-बेहाल हुआ ठोकरें खा-खा कर के ।
अब कहाँ जाके ये पटकेगा मुक़द्दर मेरा ॥

आज फिर से किये लेता हूँ  यक़ीं मैं उसका ।
'सैनी' कहता है कि बदलेगा मुक़द्दर मेरा ॥

डा० सुरेन्द्र सैनी  


   

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