Sunday, 17 November 2013

हाथ में जब से थामा क़लम

हाथ में जब से थामा क़लम । 
सच को सच ही लिखा है सनम ॥ 

आज होकर मुक़ाबिल मेरे । 
प्यार के तोड़े उसने भरम । 

और कब तक सहूँ मैं बता । 
रोज़ दर पेश है इक सितम ॥ 

उसकी नस-नस में बारूद है । 
भूल बैठा वो दैर -ओ-हरम ॥ 

कैसी ग़फ़लत में है नाख़ुदा । 
दुश्मनो के न दिखते क़दम ॥ 

आज ख़ुश -फ़हम है ये अवाम । 
गो कि  कर दे कोई सर क़लम ॥ 

सर ये 'सैनी' का कट जाए भी । 
लेगा सच के लिए ही जनम ॥ 

डा० सुरेन्द्र सैनी  

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