हाथ में जब से थामा क़लम ।
सच को सच ही लिखा है सनम ॥
आज होकर मुक़ाबिल मेरे ।
प्यार के तोड़े उसने भरम ।
और कब तक सहूँ मैं बता ।
रोज़ दर पेश है इक सितम ॥
उसकी नस-नस में बारूद है ।
भूल बैठा वो दैर -ओ-हरम ॥
कैसी ग़फ़लत में है नाख़ुदा ।
दुश्मनो के न दिखते क़दम ॥
आज ख़ुश -फ़हम है ये अवाम ।
गो कि कर दे कोई सर क़लम ॥
सर ये 'सैनी' का कट जाए भी ।
लेगा सच के लिए ही जनम ॥
डा० सुरेन्द्र सैनी
सच को सच ही लिखा है सनम ॥
आज होकर मुक़ाबिल मेरे ।
प्यार के तोड़े उसने भरम ।
और कब तक सहूँ मैं बता ।
रोज़ दर पेश है इक सितम ॥
उसकी नस-नस में बारूद है ।
भूल बैठा वो दैर -ओ-हरम ॥
कैसी ग़फ़लत में है नाख़ुदा ।
दुश्मनो के न दिखते क़दम ॥
आज ख़ुश -फ़हम है ये अवाम ।
गो कि कर दे कोई सर क़लम ॥
सर ये 'सैनी' का कट जाए भी ।
लेगा सच के लिए ही जनम ॥
डा० सुरेन्द्र सैनी
No comments:
Post a Comment