वो हमें कैसा प्यार करते हैं ।
पीठ पीछे से वार करते हैं ॥
आ गया जो ज़बान पर जुमला ।
पेश उसे बार-बार करते हैं ॥
लोग ज़िल्लत के कारनामों से ।
क़ौम को शर्मसार करते हैं ॥
साफ़ हमसे वो झूठ कहते हैं ।
और हम एतबार करते हैं ॥
पास उनको ज़रा नहीं इसका ।
जिनपे हम जाँ निसार करते हैं ॥
उनकी तारीफ़ क्या ज़रा सी की ।
अब वो नख़रे हज़ार करते हैं ॥
दिलबरों से तू मत उलझ 'सैनी'।
ये बहुत बेक़रार करते हैं ॥
डा०सुरेन्द्र सैनी
पीठ पीछे से वार करते हैं ॥
आ गया जो ज़बान पर जुमला ।
पेश उसे बार-बार करते हैं ॥
लोग ज़िल्लत के कारनामों से ।
क़ौम को शर्मसार करते हैं ॥
साफ़ हमसे वो झूठ कहते हैं ।
और हम एतबार करते हैं ॥
पास उनको ज़रा नहीं इसका ।
जिनपे हम जाँ निसार करते हैं ॥
उनकी तारीफ़ क्या ज़रा सी की ।
अब वो नख़रे हज़ार करते हैं ॥
दिलबरों से तू मत उलझ 'सैनी'।
ये बहुत बेक़रार करते हैं ॥
डा०सुरेन्द्र सैनी
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