रुख़ हवाओं का मोड़ा गया ।
दिल घटाओं का तोड़ा गया ॥
इश्क़ में अब तो हर फैसला ।
बस रक़ीबों पे छोड़ा गया ॥
एक नासूर बन जाएगा ।
आबला गर न फोड़ा गया ॥
बावफ़ाओं की लम्बी क़ितार ।
मुझको उसमें न जोड़ा गया ॥
मुझको बिन जुर्म देकर सज़ा ।
ज़र्फ़ उसका भी थोड़ा गया ॥
रहमतें की ख़ुदा ने अता ।
हाथ नाहक़ सिकोड़ा गया ॥
लाश 'सैनी बना फिर रहा ।
ख़ून इतना निचोड़ा गया ॥
डा० सुरेन्द्र सैनी
दिल घटाओं का तोड़ा गया ॥
इश्क़ में अब तो हर फैसला ।
बस रक़ीबों पे छोड़ा गया ॥
एक नासूर बन जाएगा ।
आबला गर न फोड़ा गया ॥
बावफ़ाओं की लम्बी क़ितार ।
मुझको उसमें न जोड़ा गया ॥
मुझको बिन जुर्म देकर सज़ा ।
ज़र्फ़ उसका भी थोड़ा गया ॥
रहमतें की ख़ुदा ने अता ।
हाथ नाहक़ सिकोड़ा गया ॥
लाश 'सैनी बना फिर रहा ।
ख़ून इतना निचोड़ा गया ॥
डा० सुरेन्द्र सैनी
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