Sunday, 24 November 2013

हवाओं का रुख़

रुख़ हवाओं का मोड़ा गया । 
दिल घटाओं का तोड़ा गया ॥ 

इश्क़ में अब तो हर फैसला । 
बस रक़ीबों पे छोड़ा गया ॥ 

एक नासूर बन जाएगा । 
आबला गर न फोड़ा गया ॥ 

बावफ़ाओं की लम्बी क़ितार । 
मुझको उसमें न जोड़ा गया ॥ 

मुझको बिन जुर्म देकर सज़ा । 
ज़र्फ़ उसका भी थोड़ा गया ॥

रहमतें की ख़ुदा ने अता । 
हाथ नाहक़ सिकोड़ा गया ॥

लाश 'सैनी बना फिर रहा । 
ख़ून इतना निचोड़ा गया ॥   

डा० सुरेन्द्र सैनी  

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