मौसम-ए -गुल ख़िज़ाँ से निकलेगा ।
रास्ता गुलसिताँ से निकलेगा ॥
जब भी टूटेंगी हद ज़हादत की ।
जाने क्या-क्या ज़बाँ से निकलेगा ॥
चोट देगा कहीं किसी दिल पर ।
तीर जब -जब कमाँ से निकलेगा ॥
सिर्फ़ लफ़्ज़ों की हेरा-फेरी है ।
ये ही मतलब बयाँ से निकलेगा ॥
कर परिंदों को भी आता वर्ना ।
इनका दाना कहाँ से निकलेगा ॥
तेरी चाहत जो ले के निकला है ।
कौन उस कारवॉं से निकलेगा ॥
इस बयाबान में फ़ँसा 'सैनी' ।
किस तरह अब यहाँ से निकलेगा ॥
डा० सुरेन्द्र सैनी
रास्ता गुलसिताँ से निकलेगा ॥
जब भी टूटेंगी हद ज़हादत की ।
जाने क्या-क्या ज़बाँ से निकलेगा ॥
चोट देगा कहीं किसी दिल पर ।
तीर जब -जब कमाँ से निकलेगा ॥
सिर्फ़ लफ़्ज़ों की हेरा-फेरी है ।
ये ही मतलब बयाँ से निकलेगा ॥
कर परिंदों को भी आता वर्ना ।
इनका दाना कहाँ से निकलेगा ॥
तेरी चाहत जो ले के निकला है ।
कौन उस कारवॉं से निकलेगा ॥
इस बयाबान में फ़ँसा 'सैनी' ।
किस तरह अब यहाँ से निकलेगा ॥
डा० सुरेन्द्र सैनी
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