ख़ौफ़ से ख़ारिजा नहीं मिलता ।
एक भी रास्ता नहीं मिलता ॥
सब के सब हैं हमाम में नंगे ।
शर्म से कुछ ढका नहीं मिलता ॥
हाथ मिलते हैं और चलते हैं ।
कोई बाक़ायदा नहीं मिलता ॥
लोग करते हैं जो ज़िना -बिल-जब्र ।
क्या उन्हें मशविरा नहीं मिलता ॥
कश्तियाँ ले चले जो तूफाँ में ।
मातबर नाख़ुदा नहीं मिलता ॥
आपको छोड़ कर कहाँ जाऊँ ।
आपसा रहनुमा नहीं मिलता ॥
ख़ुदकशी क्या करेगा अब 'सैनी' ।
ज़ह्र भी काम का नहीं मिलता ॥
डा० सुरेन्द्र सैनी
एक भी रास्ता नहीं मिलता ॥
सब के सब हैं हमाम में नंगे ।
शर्म से कुछ ढका नहीं मिलता ॥
हाथ मिलते हैं और चलते हैं ।
कोई बाक़ायदा नहीं मिलता ॥
लोग करते हैं जो ज़िना -बिल-जब्र ।
क्या उन्हें मशविरा नहीं मिलता ॥
कश्तियाँ ले चले जो तूफाँ में ।
मातबर नाख़ुदा नहीं मिलता ॥
आपको छोड़ कर कहाँ जाऊँ ।
आपसा रहनुमा नहीं मिलता ॥
ख़ुदकशी क्या करेगा अब 'सैनी' ।
ज़ह्र भी काम का नहीं मिलता ॥
डा० सुरेन्द्र सैनी
No comments:
Post a Comment