Monday, 30 December 2013

मुक़द्दर मेरा

जाने कब नींद से जागेगा  मुक़द्दर मेरा ।
और ये कितना रुलाएगा  मुक़द्दर मेरा ॥

रोज़ की रोज़ चलाता है नयी राहों पर ।
कौन से मोड़ पे ठहरेगा मुक़द्दर मेरा ॥

मेरे हाथों की लकीरों से हुआ है ग़ायब ।
लौट के क्या कभी आयेगा मुक़द्दर मेरा ॥

मैं थका हूँ बना के रोज़ नयी तदबीरें ।
कैसे अब देखिये संवरेगा मुक़द्दर मेरा ॥

मैं भी उम्मीद किये बैठा हूँ अब उस दिन जब ।
वक़्त के साज़ पे नाचेगा मुक़द्दर मेरा ॥

हाल-बेहाल हुआ ठोकरें खा-खा कर के ।
अब कहाँ जाके ये पटकेगा मुक़द्दर मेरा ॥

आज फिर से किये लेता हूँ  यक़ीं मैं उसका ।
'सैनी' कहता है कि बदलेगा मुक़द्दर मेरा ॥

डा० सुरेन्द्र सैनी  


   

Friday, 27 December 2013

लब -ओ-रुख़सार की बातें

क़लम लिखता नहीं मेरा लब -ओ-रुख़सार  की बातें ।
निकलती हैं फ़क़त इससे  ख़ुलूस -ओ-प्यार की बातें ॥

अगर मैं प्यार करता हूँ तो बस मैं प्यार करता हूँ ।
नहीं मैं प्यार में करता हूँ कारोबार की बातें ॥

मेरा तो काम दुन्या भर के लोगों को जगाना है ।
बक़ाया काम है सरकार का सरकार की बातें ॥

गगन के चाँद को देखूँ या फिर मैं आपको देखूँ ।
उधर हलकान करती हैं दिल -ए -बीमार की बातें ॥

ज़ियादा तूल मत देना लगाना अक़्ल अपनी भी ।
बड़ी ही चटपटी होती हैं ये अख़बार की बातें ॥

लगाऊँ क्या भला अंदाज़ मैं तेरी मुहब्बत का ।
हमेशा ही रही मुझसे तेरी तक़रार की बातें ॥

मुहब्बत के समुंदर में लगा बैठे सभी डुबकी ।
सुना कर आज जब 'सैनी'गया दिलदार की बातें ॥

डा० सुरेन्द्र सैनी  

Wednesday, 25 December 2013

नए साल में दुआ

सबके चेहरों पे नूर ठहरा हो ।
और रानाईयों का पहरा हो ॥

डूब कर आप जिसमें रह जाएँ ।
प्यार हर दिल में इतना गहरा हो ॥

ताब जिसकी हो चाँद के जैसी ।
सबकी क़िस्मत में एसी ज़हरा हो ॥

पूरी धरती गुलों से महकी हो ।
दूर तक भी न कोई सहरा हो ॥

मुस्कुराहट गुलाब जैसी हो ।
एसा पुरनूर सबका  चेहरा हो ॥

मुल्क में हर तरफ़ तरक्की हो ।
वक़्त कल का बड़ा सुनहरा हो ॥

है नए साल में  दुआ 'सैनी '।
अँधा ,गूँगा न कोई बहरा हो ॥

ज़हरा -------ख़ूबसूरत  औरत


डा० सुरेन्द्र सैनी  

Tuesday, 24 December 2013

बताओ कौन अच्छा है

अगर सब ही बुरे हैं तो बताओ कौन अच्छा है । 
उसी को ताज पहनाओ बताओ कौन अच्छा है ॥  

शराफ़त के मुखौटे सब के चेहरों पर लगे लेकिन । 
दिलों में  झाँक कर देखो बताओ कौन अच्छा है ॥  

दिखा कर ख़ाब झूठे कुसियों पर लोग जा  बैठे । 
ख़ुदा के वास्ते हमको बताओ कौन अच्छा है ॥  

चलन उनका भी देखा है चलन देखा तुम्हारा भी । 
तजरबा  हो गया अब तो बताओ कौन अच्छा है ॥  

निशाने पर हमेशा दूसरों की आँख रखते हैं । 
उन्ही की आँख से पूछो बताओ कौन अच्छा है ॥  

बुराई और अच्छाई हैं दोनों ही निहाँ उसमें । 
बुरा भी वो भला भी वो बताओ कौन अच्छा है ॥  

सियासत में  हमारे बीच से ही लोग जाते हैं ।   
अगर 'सैनी' खड़े हैं दो बताओ कौन अच्छा है ॥  

डा० सुरेन्द्र सैनी  
   

ख़तरे जैसी बात न कर

ख़तरे जैसी बात न कर ।
डरने जैसी बात न कर ॥

दिल से करदे आज अता ।
धोखे  जैसी बात न कर ॥

आलिम-फ़ाज़िल लोग सभी ।
ठगने जैसी बात न कर ॥

है ग़म का माहौल यहाँ ।
हँसने जैसी बात न कर ॥

ख़तरे में है आज अवाम ।
बँटने जैसी बात न कर ॥

छोटी सी बातों में कभी ।
मिटने जैसी बात न कर ॥

नाज़ुक दिल है मेरा बहुत ।
नख़रे जैसी बात न कर ॥

सबसे ऊंचा तेरा ज़मीर ।
बिकने जैसी बात न कर ॥

'सैनी' के घर में तू कभी ।
परदे जैसी बात न कर ॥

डा० सुरेन्द्र सैनी  

उजालों में

इन गुज़श्ता तमाम सालों में । 
अक्स तेरा रहा ख़यालों में ॥ 

नाम उसका निकल गया मुँह से । 
और मैं  घिर गया सवालों में ॥ 

आजकल हैं वो किस बलंदी पर । 
रोज़ ही छप रहा रिसालों में ॥ 

तीरगी में तो साफ़ सुथरा था । 
दाग़ लगवा लिए उजालों में । 

जब से देखा तुम्हे हुआ शामिल । 
नाम मेरा भी इश्क़ वालों में ॥ 

मैं दिखाता  हूँ प्यार के रस्ते । 
मुझको रक्खो न बंद तालों में ॥ 

आज 'सैनी' से पूछना जा कर । 
किसके वो खो गया ख्यालों में ॥ 

डा० सुरेन्द्र सैनी  

Thursday, 12 December 2013

प्यार सीधा खुदा से आता है

प्यार जो उम्र भर निभाता है । 
प्यार में इंक़िलाब लाता है ॥ 

प्यार बिकता नहीं दुकानों पर । 
प्यार सीधा खुदा से आता है ॥ 

प्यार को खेल जो समझते हैं । 
प्यार उनको नहीं सुहाता है ॥ 

जिसके जज़्बात ही न हों दिल में । 
प्यार फ़र्ज़ी वही दिखाता है ॥ 

उससे उम्मीद प्यार की कैसी । 
प्यार में असलियत छुपाता है ॥ 

प्यार में जो फ़िरेब करता है । 
प्यार से वो फ़िरेब खाता है ॥ 

जीतना जानता नहीं 'सैनी '। 
प्यार में रोज़ हार जाता है ॥ 

डा० सुरेन्द्र सैनी  

Wednesday, 11 December 2013

नामवर आशिक़

किसी ने प्यार से महका गुलाब भेजा है ।
बड़े ख़ुलूस से ख़त का जवाब भेजा है ॥

कहीं पे उनको गिरानी है आज तो बिजली ।
फ़लक से चाँद ने उनको शबाब भेजा है ॥

सुना है क़र्ज़ वो रखते नहीं किसी का भी ।
मेरी वफाओं का सारा हिसाब भेजा है ॥

लिखूं मैं कुछ तो सिफ़ारिश किताब पे उनकी ।
तभी तो एक क़लम -मय -किताब भेजा है ॥

हया के पीछे छुपा रक्खी शोखियाँ सारी ।
ख़ुदा ने ख़ास ये देकर हिजाब भेजा है ॥

कहा है रोज़ ही मुझसे मिला करेंगे वो ।
दिखा के मुझको नया आज ख़ाब भेजा है ॥

जला न दे कहीं ये धूप गोरे गालों को ।
हवा ने साये की ख़ातिर सहाब भेजा है ॥

बना हूँ मैं तो आज एक नामवर आशिक़ ।
ये दोस्तों ने मुझे अब ख़िताब भेजा है ॥

बड़े ग़ज़ब का मुक़द्दर दिया इलाही ने ।
बना के 'सैनी' को ख़ाना -ख़राब भेजा है ॥

डा० सुरेन्द्र सैनी   

Sunday, 8 December 2013

रंगीन कर

बेसबब मत सोच को ग़मगीन कर ।
हौसलों से रास्तें रंगीन कर ॥

जो विरासत में उजाले मिल गए ।
चूम ले उनको न यूँ  तौहीन कर ॥

पेट अपने हक़ से मेरा भर रहा ।
क्या करूंगा दूसरों से छीन कर ॥

मिट न जाए क़ौम का नाम-ओ-निशाँ ।
ज़ुल्म तू ऐसा नहीं संगीन कर ॥

एब फैले हैं जहाँ में दूर तक ।
आँख को अपनी ज़रा दुरबीन कर॥

प्यार का है ज़ायका मीठा बड़ा ।
मत जफ़ाओं से इसे नमकीन कर ॥

इश्क़ तू  फ़रमा चुका 'सैनी ' बहुत ।
बंदगी का ख़ुद को अब शौकीन कर ॥

डा० सुरेन्द्र सैनी

 

Thursday, 5 December 2013

कोई किसान लिक्खेगा

 हुस्न होकर जवान लिक्खेगा ।
 इश्क़ की दास्तान  लिक्खेगा ॥

आज आशिक़ सनम को मेहर में ।
सातवा आसमान लिक्खेगा ॥

अब्र भी बर्क़ को हिदायत में ।
एक मेरा मकान लिक्खेगा ॥

कुछ न होगा तेरी सदाक़त का ।
जब वो झूठा बयान लिक्खेगा ॥

बोलिये आप जो भी बोलेंगे ।
वो ही ये बेज़ुबान लक्खेगा ॥

किसकी क़िस्मत में कितने दाने हैं ।
ये तो कोई किसान लिक्खेगा ॥

'सैनी' अपने क़लम से दुन्या में ।
मुल्क की आन-बान लिक्खेगा ॥

डा० सुरेन्द्र सैनी  

Tuesday, 3 December 2013

दिल में बसे हुए हैं

हमारे दिल में बसे  हुए हैं ।
तभी तो अब तक बचे हुए हैं ॥

जहां का खाया नमक हमेशा ।
वहीं पे फ़ितने किए हुए हैं ॥

बताना होश आने पे तबीयत ।
अभी तो दारू पिए हुए हैं ॥

यहाँ हैं लाशें दबी किसी की  ।
जहाँ अकड़ कर खड़े हुए हैं ॥

दुआओ में तुमको याद रक्खा ।
ख्यालों में क्यूँ बुरे हुए हैं ॥

जहाँ पे गंदी हुई सियासत ।
वहाँ पे झगडे बड़े हुए हैं ॥

कभी जो तुमने दिए जफ़ा के ।
दिलों पे नश्तर गुदे हुए हैं ॥

किसी के धंदे किसी के फ़ंदे ।
गले में अपने पड़े हुए हैं ॥

अदा पे जिसकी मिटा है 'सैनी'।
उसी के आंसू दिए हुए हैं ॥  

डा०सुरेन्द्र सैनी  

Monday, 2 December 2013

जब-जब बेबस होता हूँ

मैं अपनी क़िस्मत के आगे जब-जब बेबस होता हूँ ।
तुम क्या जानो तन्हाई में कितने आँसू रोता हूँ ॥

जिन नग़मों पे सुनने वाले अक्सर झूमा करते हैं ।
मैं रातों में उनके ही ताने-बाने में सोता हूँ ॥

जाने क्यूँ उगते हैं कांटे मेरे नन्हें पौधों पर ।
फूलों के बीजों को मैं इतनी शिद्दत से बोता हूँ ॥

घाइल हो जाता है सीना अपनों की बाते सुनकर ।
ख़ूँ आलूदा ज़ख्म-ए -दिल को अश्क-ए -ग़म से धोता हूँ ॥

सच्चाई से जो मिलता है बच्चों को नाकाफ़ी है ।
काम आयेगी कब ख़ुद्दारी रोज़ाना जो धोता हों ॥

अपनी नाकामी पर जब भी बढ़ जाती है बेचैनी ।
खिसियाहट में पागल होकर अपना आपा खोता हूँ ॥

'सैनी' किससे कब रूठा हूँ  कोई तो ये बतलाये ।
सबको अपना-अपना बोलूं चाबी वाला तोता हूँ ॥

डा० सुरेन्द्र सैनी