Wednesday, 27 November 2013

उकता गए हैं वो

अब हर घड़ी के प्यार से उकता गए हैं वो ।
तक़रार थोड़ी कीजिये पास आ गए हैं वो ॥

दिन भर की दौड़- धूप  से चेहरे पे है थकान ।
आराम करने दो   उन्हें कुम्हला गए हैं वो ॥

ये यकबयक क्यूँ आ गयी तुर्शी मिज़ाज में ।
मेरी ज़रा सी बात पर बौरा  गए हैं वो ॥

रख कर निक़ाब ताक़ पर महफ़िल में हुस्न की ।
परचम ग़ुरूर-ए -हुस्न का लहरा गए हैं वो ॥

अब प्यास बढ़ती जाए है उम्र-ए -रवाँ  के साथ ।
पैमाने में बची थी जो छलका गए हैं वो ॥

कब क्या हुआ कैसे हुआ ये मुझसे पूछिए ।
इक दर्द रोम-रोम में सरका गए हैं वो ॥

आँखों से उनकी पी चुका 'सैनी' बहुत शराब।
अब बस भी यार कीजिये घबरा गए हैं वो ॥

डा०सुरेन्द्र सैनी  

Monday, 25 November 2013

कैसा प्यार करते हैं

वो हमें कैसा प्यार करते हैं ।
पीठ पीछे से वार करते हैं ॥

आ गया जो ज़बान पर जुमला ।
पेश उसे बार-बार करते हैं ॥

लोग ज़िल्लत के कारनामों से ।
क़ौम को शर्मसार करते हैं ॥

साफ़ हमसे वो झूठ कहते हैं ।
और हम  एतबार करते हैं ॥

पास उनको ज़रा नहीं इसका ।
जिनपे हम जाँ निसार करते हैं ॥

उनकी तारीफ़  क्या ज़रा सी की ।
अब वो नख़रे हज़ार करते हैं ॥

दिलबरों से तू मत उलझ 'सैनी'।
ये बहुत बेक़रार  करते हैं ॥

डा०सुरेन्द्र सैनी  

Sunday, 24 November 2013

हवाओं का रुख़

रुख़ हवाओं का मोड़ा गया । 
दिल घटाओं का तोड़ा गया ॥ 

इश्क़ में अब तो हर फैसला । 
बस रक़ीबों पे छोड़ा गया ॥ 

एक नासूर बन जाएगा । 
आबला गर न फोड़ा गया ॥ 

बावफ़ाओं की लम्बी क़ितार । 
मुझको उसमें न जोड़ा गया ॥ 

मुझको बिन जुर्म देकर सज़ा । 
ज़र्फ़ उसका भी थोड़ा गया ॥

रहमतें की ख़ुदा ने अता । 
हाथ नाहक़ सिकोड़ा गया ॥

लाश 'सैनी बना फिर रहा । 
ख़ून इतना निचोड़ा गया ॥   

डा० सुरेन्द्र सैनी  

Thursday, 21 November 2013

एहसास

एहसास ज़िंदगी में जो छू कर गुज़र गया ।
मेरे लिए बहुत बड़ा वो काम कर गया ॥

तेरे बग़ैर जी सकूँ कोशिश में हूँ ज़रूर ।
वर्ना वुजूद तो मेरे भीतर का मर गया ॥

हम सूफ़ियाना दिल लिए बचते रहे मगर ।
उनकी नज़र का तीर था दिल में उतर गया ॥

साये के पीछे भाग कर मुझको न कुछ मिला ।
ओझल निगाह से हुआ जाने किधर गया ॥

फ़रमाइशों पे आज फिर बच्चों को डाँट दी ।
जब ले के खाली जेब मैं दफ़्तर से घर गया ॥

शर्म-ओ-हया तो ताक़ पे रख दी है उसने आज ।
लगता है उसकी आँख का पानी उतर गया ॥

कोई नहीं है आर्ज़ू कोई न जुस्तजू ।
'सैनी'किसी के प्यार में हद से बिखर गया ॥

डा०सुरेन्द्र सैनी   

Sunday, 17 November 2013

तमन्नाओं की मंज़िल

किसी की आह सुनकर जिसकी बेचैनी बढ़ी होगी । 
वो सीरत भी भली होगी वो सूरत भी भली होगी ॥ 

इनायत से भरी नज़रें हैं उसकी अब मेरी जानिब । 
सदाक़त प्यार की उसने भी मेरे मान ली होगी ॥ 

चुरा कर ले गया दौलत जो मेरे चैन की कोई । 
नहीं थी काम की मेरे वो उसके काम की होगी ॥ 

तेरी चाहत के सदक़े आज मैं सब कुछ लुटा बैठा । 
जो तू देकर गया आँखों में अब तो वो नमी होगी ॥ 

हसद में बौखलाहट बढ़ गई है आज लोगों की । 
किसी का कुछ सँवरने पर किसी को क्या ख़ुशी होगी ॥ 

मुसलसल ग़म दिए हैं ज़िंदगी ने अब तलक मुझको । 
भला मुझसे बुरी अब क्या किसी की ज़िंदगी होगी ॥ 

तमन्नाएं मचलती  हैं बहुत सी ज़िहन में 'सैनी' । 
ख़बर क्या थी तमन्नाओं की मंज़िल मैकशी होगी ॥ 

डा० सुरेन्द्र सैनी  

हाथ में जब से थामा क़लम

हाथ में जब से थामा क़लम । 
सच को सच ही लिखा है सनम ॥ 

आज होकर मुक़ाबिल मेरे । 
प्यार के तोड़े उसने भरम । 

और कब तक सहूँ मैं बता । 
रोज़ दर पेश है इक सितम ॥ 

उसकी नस-नस में बारूद है । 
भूल बैठा वो दैर -ओ-हरम ॥ 

कैसी ग़फ़लत में है नाख़ुदा । 
दुश्मनो के न दिखते क़दम ॥ 

आज ख़ुश -फ़हम है ये अवाम । 
गो कि  कर दे कोई सर क़लम ॥ 

सर ये 'सैनी' का कट जाए भी । 
लेगा सच के लिए ही जनम ॥ 

डा० सुरेन्द्र सैनी  

Sunday, 10 November 2013

रास्ता नहीं मिलता

ख़ौफ़ से ख़ारिजा नहीं मिलता ।
एक भी रास्ता  नहीं मिलता ॥

सब के सब हैं  हमाम में नंगे ।
शर्म से कुछ ढका  नहीं मिलता ॥

हाथ मिलते हैं और चलते हैं ।
कोई बाक़ायदा  नहीं मिलता ॥

लोग करते हैं जो ज़िना -बिल-जब्र ।
क्या उन्हें मशविरा नहीं मिलता ॥

कश्तियाँ ले चले जो तूफाँ में ।
मातबर नाख़ुदा  नहीं मिलता ॥

आपको छोड़ कर कहाँ जाऊँ ।
आपसा रहनुमा  नहीं मिलता ॥

ख़ुदकशी क्या करेगा अब 'सैनी' ।
ज़ह्र भी काम का  नहीं मिलता ॥

डा० सुरेन्द्र सैनी

मौसम-ए -गुल

मौसम-ए -गुल ख़िज़ाँ से निकलेगा । 
रास्ता गुलसिताँ से निकलेगा ॥ 

जब भी टूटेंगी हद ज़हादत की । 
जाने क्या-क्या ज़बाँ से निकलेगा ॥ 

चोट देगा कहीं  किसी दिल पर । 
तीर जब -जब कमाँ से निकलेगा ॥ 

सिर्फ़ लफ़्ज़ों की हेरा-फेरी है । 
ये ही मतलब बयाँ से निकलेगा ॥ 

कर परिंदों को भी आता वर्ना । 
इनका दाना कहाँ से निकलेगा ॥ 

तेरी चाहत जो ले के निकला है । 
कौन उस कारवॉं से निकलेगा ॥ 

इस बयाबान में फ़ँसा 'सैनी' । 
किस तरह अब यहाँ से निकलेगा ॥ 

डा० सुरेन्द्र सैनी

Mausam-e-gul

Mausam-e-gul khizaaN se niklegaa.
Raastaa gulsitaaN se niklegaa.

Jab bhee tootengee had zahaadat kee.
Jaane kyaa-kyaa zabaaN se niklegaa.

Chot degaa kaheeN kisee dil par.
Teer jab-jab kamaaN se niklegaa.

Sirf lafzoN kee heraa-pheree hai.
Ye hee matlab bayaaN se niklegaa.

Kar parindoN ko bhee ataa varnaa.
Inkaa daanaa kahaaN se niklegaa.

Teree chaahat jo leke niklaa hai.
Kaun us kaarwaaN se niklegaa.

Is bayaabaan meN fansaa ‘saini’.
Kis tarah ab yahaaN se niklegaa.

Dr.Surendra Saini

Tuesday, 5 November 2013

दीवानापन

ले डूबा दीवानापन ।
ये कैसा दीवानापन ॥

सब पर भारी पड़ता है ।
ये मेरा दीवानापन ॥

तेरे अंदर भी तो है ।
थोड़ा सा दीवानापन ॥

चाहत में जो लुट बैठा ।
है उसका दीवानापन ॥

तुम कहते हो पर मैंने ।
कब छोड़ा दीवानापन ॥

जाने क्या -क्या करवादे ।
लोगों का दीवानापन ॥

'सैनी' खाते में लिक्खे ।
किस -किस का दीवानापन ॥

डा० सुरेन्द्र सैनी