Thursday, 26 September 2013

ख़ाबों का सिलसिला

पास आते ही तुम्हारे हो गया इक हादिसा ।
हम ठगे से रह गए जब दिल हुआ ये आपका ॥

दो घड़ी बैठूं मैं तेरे गेसुओं की छावँ में ।
आरज़ू कब होगी पूरी तू ज़रा मुझको बता ॥

दिल चुराकर यूँ  तो मेरा खुश बहुत होंगे मगर ।
एक पहलू में इन्हें रक्खोगे कैसे  तुम भला ॥

मौत की आहट सुनाई मुझको अब देने लगी ।
जीते जी सूरत तुम्हारी देख लूँ  बस दिलरुबा ॥

ख़ाब में आते हो जब भी झट से खुल जाती है आँख ।
और रह जाता हूँ मैं बस देखता का देखता ॥

मैं नहीं चाहूँ कि पूरी ख़ाब की ताबीर हो ।
पर मुसलसल ख़ाब का चलता रहे ये सिलसिला ॥

नाम तेरा अब लबों पर आ ही जाता दफ़अतन  ।
लोग कहते हैं की 'सैनी ' इश्क तुझको हो गया ॥

डा० सुरेन्द्र सैनी  

Wednesday, 25 September 2013

मशविरा

किसी का मशविरा गर मान लेता ।
तेरी नीयत को मैं पहचान लेता ॥

मेरी कश्ती को देता तू सहारा ।
मैं क्यूँ फिर ग़ैर का एहसान लेता ॥

तबाही का जो आलम चार सू है ।
सबक़ इससे नहीं इंसान लेता ॥

मुझे भी हौसला मिलता सफ़र में ।
अगर दिल में ख़ुदा को मान लेता ॥

तू दुश्मन से न कुछ भी मात खाता ।
कभी एयार से जो जान लेता ॥

बताता काश कोई एब मेरे ।
तरफ़ अपनी मैं ख़ंजर तान लेता ॥

मना 'सैनी ' तो कर सकता नहीं था ।
मनाने की अगर तू ठान लेता ॥

डॉ०  सुरेन्द्र सैनी                             

Sunday, 22 September 2013

की फ़र्क़ पैंदा है अब

सर से गंजा है तू और काना है तू छड्ड ओ यार की फ़र्क़ पैंदा है अब ।
घाघ आशिक़ बड़ा ही पुराना है तू छड्ड ओ यार की फ़र्क़ पैंदा है अब ॥

मेरे कूचे तू में रोज़ पिटता रहा कुछ असर तुझपे फिर भी कभी न हुआ ।
आज तक भी नहीं हार माना है तू छड्ड ओ यार की फ़र्क़ पैंदा है अब ॥

है लफंगा भी तू और लुच्चा भी तू एबदारी का बेताज है बादशाह ।
सारी शैतानियों का ख़ज़ाना है तू छड्ड ओ यार की फ़र्क़ पैंदा है अब ॥

ढूंढ लेता है सब देख  लेता है सब रोशनी हो या फिर हो अन्धेरा घना ।
एक उल्लू के जैसा सयाना है तू छड्ड ओ यार की फ़र्क़ पैंदा है अब ॥

यूँ  अंदर भरी खूब मक्कारियां तू हसीनों की करता हैं एयारियाँ ।
शक्ल-ओ-सूरत से तो सूफ़ियाना है तू छड्ड ओ यार की फ़र्क़ पैंदा है अब ॥

आशनाई रक़ीबों  से तेरी रही और मुझसे भी निस्बत दिखाता रहा ।
सब रक़ीबों का इक आशियाना है तू छड्ड ओ यार की फ़र्क़ पैंदा है अब ॥

रोज़ कहता है 'सैनी ' की ग़ज़लें बुरी उनका पढ़ना भी तुझको गवारा नहीं ।
फिर भी लगता उसी का दीवाना है तू छड्ड ओ यार की फ़र्क़ पैंदा है अब ॥

डा० सुरेन्द्र सैनी  

Thursday, 19 September 2013

हदें पार सभी करली हैं

सब्र करने की हदें पार सभी करली हैं ।
मन में घुटने की हदें पार सभी करली हैं ॥

अब तो तलवार उठाने की दिखाओ हिम्मत ।
आज डरने की हदें पार सभी करली हैं ॥

आओ उस साँप के फन को ही कुचल डालें अब ।
जिसने डसने की हदें पार सभी करली हैं ॥

क्यूँ डराते हो मुझे मौत का झाँसा देकर ।
मैंने मिटने की हदें पार सभी करली हैं ॥

अपनी ग़ैरत को बचाना ही है मक़्सिद अब तो ।
हमने लुटने की हदें पार सभी करली हैं ॥

एसे कमज़र्फ़ को अब पाठ पढ़ाना होगा ।
जिसने बिकने की हदें पार सभी करली हैं ॥

लोग 'सैनी' को सभी प्यार करें शिद्दत से ।
उसने लिखने की हदें पार सभी करली हैं ॥

डा०सुरेन्द्र सैनी  

Wednesday, 18 September 2013

सीख गए

जाने कब से वो सताने का हुनर सीख गए ।
साज़ बजते ही वो लचकाना कमर सीख गए ॥

यूँ  तो उस्ताद से हम भी सदा महरूम रहे ।
तुमसे सीखा नहीं है हमने मगर सीख गए ॥

रास्ते में हैं बहुत लोग सताने वाले ।
बाख़ुदा करना वो तो टेढ़ी नज़र सीख गए ॥

मेरे बच्चों को पता है मेरी मजबूरी का ।
दो ही रोटी में वो अब करना बसर सीख गए ॥

लोग हैं आज ज़माने के सयाने इतने ।
कुछ इधर मुँह से निकाला वो उधर सीख गए ॥

चौंक जायेगी किसी दिन ये अदब की दुन्या ।
शायरी करना वो कुछ ढंग से अगर सीख गए ॥

मैं समझता हूँ ये आसान बहुत है यारों ।
आज लिखना भी जो 'सैनी ' से बशर सीख गए ॥

डा० सुरेन्द्र सैनी  

Tuesday, 17 September 2013

ख़ामोश इश्क़

हर क़दम फूंक-फूंक रखता है ।
प्यार भी नाप कर वो करताहै ॥

नाम क्या है कहाँ वो रहता है ।
रोज़ ही ये सवाल उठता है ॥

कुछ भी सुनता नहीं वो दोबारा ।
सारी बातों को याद रखता है ॥

उसकी मजबूरियों का क़ाइल  हूँ ।
हो के पर्दानशीं जो रह्ता है ॥

प्यार जब भी करूँ  कहे अक्सर ।
छोडो झंझट में कौन पड़ता है ॥

सोचता है कईं महीने वो ।
तब कहीं एक लफ्ज़ लिखता है ॥

तीर बातों के नुकीले उसके ।
ये दिले नातवाँ  ही सहता है ॥

उसके ख़ामोश इश्क़ में 'सैनी'।
दिल में रोता है दिल में हंसता है ॥

डा० सुरेन्द्र सैनी  

Wednesday, 11 September 2013

उजाड़ बैठा है

कौन बस्ती उजाड़ बैठा है ।
सबसे रिश्ते बिगाड़ बैठा है ॥

एक दिन में फ़लक पे जा पहुँचा ।
एसा उसका जुगाड़ बैठा है ॥

प्यार में झिडकियां तो जायज़ हैं ।
पर मुझे वो लताड़ बैठा है ॥

अब सुलह क्या करेगा वो मुझसे ।
पिछली बातें उखाड़ बैठा है ॥

सामने अब तलक न आया है ।
बंद करके किवाड़ बैठा  है ॥

आज शागिर्द बैत बाज़ी में ।
शायरों को पछाड़ बैठा है ॥

आफ़तों के हर एक रस्ते में ।
बन के 'सैनी' पहाड़ बैठा है ॥

डा० सुरेन्द्र सैनी  

Tuesday, 10 September 2013

होश उड़ाने वाले

मेरे जीवन को यूँ बेहाल बनाने वाले ।
आज पूछेंगे तेरा हाल ज़माने वाले ॥

खूब मिलते हैं मुझे लोग बनाने वाले ।
मुझसे शायर को भी ग़ालिब सा बताने वाले ॥

मेरी ग़ज़लों पे तेरी एक नज़र हो जाती ।
रोज़ की रोज़ मुझे अपनी सुनाने वाले ॥

अब समझ आयी है मुझको ये तेरी शैतानी ।
बातों-बातों में मेरे दिल को चुराने वाले ॥

तेरी महफ़िल से मुझे कोई उठा कर देखे ।
अब तलक आ चुके कितने ही उठाने वाले ॥

काश कुछ सीख लेता मैं भी हुनर लिखने का ।
अब तो मिलते नहीं उस्ताद सिखाने वाले ॥

अक़्ल आयी  है अभी  ज़िंदगी में 'सैनी' को ।
गीत लिखता है सभी होश उड़ाने  वाले ॥

डा० सुरेन्द्र सैनी  

Sunday, 8 September 2013

तुम

मेरे ख़ाबों को तोड़ देना तुम ।
मेरी यादों को छोड़ देना तुम ॥

मेरी आहें अगर सुनाई दें ।
रुख़ हवाओं के मोड़ देना तुम ॥

प्यार करना गुनाह है तो फिर ।
मेरे खाते में जोड़ देना तुम ॥

जो तुम्हारी तरफ़ उठे उंगली ।
मेरी बाहें मरोड़ देना तुम ॥

तेरी आग़ोश में न सो जाऊं ।
मुझको कास कर झिंझोड़ देना तुम ॥

मेरे अश्कों के दाग़ शायद हों ।
धो के दामन निचोड़ देना तुम ॥

किससे  कैसा सलूक करना है ।
ये तो 'सैनी' पे छोड़ देना तुम ॥

डा० सुरेन्द्र सैनी  

Friday, 6 September 2013

मुस्कराहट का गहना

मुस्कराहट को गहना बना ।
ज़िंदगी से ग़मों को भगा ॥

इज्ज़तें ,शोहरतें ,ताकतें ।                              
इनके पीछे न ख़ुद को लगा ॥

आंच तुझ पर न कुछ आयेगी ।
ओढ़ ले दोस्तों की दुआ ॥

माँगता है क्यूँ तू और से ।
देने वाला है जब वो खुदा ॥

इश्क़  में मुब्तिला तो नहीं ।
आईने को ज़रा तू बता ।

तेरी  आँखें झुकी शर्म से ।                                          
जुर्म क्या आज तूने किया ॥

दूर शिकवे सभी आज कर ।
सामने आज 'सैनी' खडा ॥

डा० सुरेन्द्र सैनी